2अक्टूबर: गांधी तथा शास्त्री जयंती के अलावा उत्तराखण्ड के लिए महत्वपूर्ण दिन:
मीडिया लाइव, देहरादून: गांधी और शास्त्री जयंती के अलावा आज उत्तराखण्ड आन्दोलन के शहीदों को याद करने का दिन है। सपनों के जिस पृथक राज्य के लिए आन्दोलनकारियों ने शहादतें दी, वह बीते 20 वर्षों में आंशिक तौर पर भी देखने को नहीं मिला। राज्य में सत्तारूढ़ रही सियासी पार्टियों की जनविरोधी नीतियों के कारण ही ऐसा हुआ। इतना ही नहीं बल्कि राज्य के आम जनमानस की स्थिति पहले के मुकाबले ज्यादा खराब हुई है। राज्य के मौजूदा हालातों से तो आप बेहतरीन ढंग से वाकिफ हैं। आइए आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं।
2अक्टूबर 1994 को हमारी जनता शासक दलों द्वारा दिये घावों का दंश झेल रही थी। बडी़ संख्या में आन्दोलनकारी अपनी शहादतें दे चुके थे। सिर्फ एक स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न को साकार करने के लिये शासक दलों ने अलग राज्य का झुनझुना तो पकडा़या किन्तु राज्य बनने के बाद राजनेताओं, लालफीताशाही व माफियाओं के नापाक गठबंधन द्वारा हमारी संशाधनों की खुली लूट खसोट की गई। परिणामस्वरूप आज पलायन से लेकर रोजगार, शिक्षा , स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। 2अक्टूबर 1994 मुजफ्फरनगर नरसंहार कांड व काला दिवस के नाम से भी याद किया जाता है । उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी राज्य की मांग को लेकर दिल्ली के लालकिला मैदान में होने वाली रैली में शामिल होने जा रहे थे । 1अक्टूबर 1994 को सांय बड़ी संख्या में राज्य आंदोलनकारी बसों से दिल्ली के लिये रवाना हो रहे थे। रात्रि में आंदोलनकारियों को रूड़की के पास भारी पुलिस बल ने रोक दिया। आगे बढ़ने के लिए लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। इसके बाद जाकर बसों को आगे जाने दिया गया। ऐसे ही नारसन हरिद्वार में भी आंदोलनकारियों को रोका गया। इस प्रकार जगह-जगह आगे बढ़ने पर बधाएं खडी़ की गईं ।किसी तरह लोग मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहे से पहले पहुंच गये, लेकिन वहां बेतहाशा पुलिस बल के साथ आगे बढ़ने का संघर्ष जारी रहा। इसी संघर्ष में पुलिस प्रशासन ने आन्दोलनकारियों के साथ हर तरह से क्रूरता की हदें पार की। लेकिन अलग राज्य की मांग को लेकर अपने कदमों को आगे बढ़ाते आंदोलनकारियों ने अपनी जद्दोजहद और संघर्ष जारी रखा तथा तथा कई युवाओं को पुलिस के चंगुल से बचाने के साथ ही पुलिस प्रशासन की तानाशाही का जोरदार जबाव दिया। इसमें हमारे कई साथी भी घायल हुए, जिन्हें बाद में रुड़की अस्पताल के लिए रैफर किया गया।
इस दौरान उसी दिन कुछ आंदोलनकारियों को बाद जबरन देहरादून लौटा दिया गया। देहरादून में कर्फ्यू की घोषणा कर दी गई। इसी बीच चौधरी देहरादून निवासी युवा आंदोलनकारी दीपक वालिया जोगीवाला पुलिस की गोली के शिकार हुए । इसके साथ ही पूरे उतराखंड में पुलिसिया दमन शुरू हो गया।
मुजफ्फरनगर में उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी महिलाओं के साथ पुलिसकर्मियों के दुर्व्यवहार के सन्दर्भ में महिला समिति के अखिल भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने राज्य का दौरा किया था।