मसला दाँतों की सेहत से जुड़ा हुआ: निकाले गये दाँत संभाल कर रखने होंगे
मीडिया लाइव: घर-गांव और शहरों में आपने बच्चों व बड़ों से अक्सर दाँत टूट जाने पर कहते सुना होगा कि ! दांत चूहा ले गया. यह बच्चों को बहलाने और दांत दर्द से उनका ध्यान भटकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक आम जुमला था. लेकिन निकाले गये दांत का वास्तव में क्या होता है ? ये हम सभी जानते हैं. जी हां ! उसे फेंक दिया जाता है. क्योकि अब तक उसकी कोई उपयोगिता नहीं थी. लेकिन अब विज्ञान और तकनीक के सहयोग ने हमारी इस सोच को बदल दिया है. दन्त चिक्तिसा के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी बदलाव हो चुके हैं. यह पेशा अब महज दांत निकालने या लगाने तक सीमित नहीं रहा.

गौरतलब है कि वक्त की झँझावतों से जूझती इंसानी जिंदगी तमात तरह की बीमारियों का अड्डा बनती जा रही है, ऐसे में दाँत सम्बन्धी विकार भले ही लोगों को बहुत जरूरी नहीं लगते, इसीलिए इनके प्रति लोग बहुत ज्यादा लापरवाही बरतते रहे हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है, दाँतों की सेहत को लेकर समाज में जागरूकता देखने को मिल रही है.
अब आते हैं इस वक्त के असल मुद्दे पर ! जैसा की हमने पहले ही कहा कि अब तक लोग उखाड़े गए दाँत फेंक देते थे, लेकिन अब कोई भी ऐसी भूल नहीं करना चाहेगा. बल्कि इन दाँतों को वायरस फ्री या वैक्टीरिया फ्री कर आधुनिक मशीनों और रसायनों के जरिये दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. खास कर यहां जब बात दाँतों की हो रही है, तो कह सकते हैं कि इससे अब भविष्य में मरीज के जबड़े की हड्डी तक बनाई जा सकती है। इसके लिए बोन ग्राफ्टिंग मशीन की सहायता ली जाती है. कह सकते हैं कि एक तरह से दाँत इम्प्लांट की प्रक्रिया के लिए बेहद अहम मानी जाने वाली मसूड़े की मजबूती को सर्जरी के जरिये तैयार किया जाता है. इसमें कुछ वक्त जरूर लगता है, लेकिन दाँतों की सेहत के लिए यह बेहद जरूरी कदम माना जाता है.

इस पर दन्त रोग विशेषज्ञ डॉ. नितेश काम्बोज बताते हैं कि दन्त चिकित्सा का क्षेत्र अब पहले जैसा साधारण पेशा नहीं रहा, इसमें तमाम तरह के नए वैज्ञानिक और तकनीकी प्रयोग हो चुके हैं, लेकिन यहां अभी आम लोगों में इसकी समझ विकसित नहीं हो पाई है. इसके लिए जागरूकता की जरूरत है. उन्होंने बताया कि अब उखाड़े गए दांत फेंके नहीं जाएंगे। बल्कि उन्हें संक्रमण मुक्त कर, फिर उच्च गुणवत्ता वाली ग्राइंडर मशीन में डाल कर बारीक कणों में बदलकर पाउडर की तरह तैयार कर जबड़े या मसूड़े की हड्डी बनाई जाएगी। इसके अलावा डॉ. नितेश ने एक बहुत जरूरी बात बताते हुए कहा कि अक्सर किसी दुर्घटना में जबड़े के फ्रेक्चर होने की दशा में समस्या ज्यादा बड़ी हो जाती है. लेकिन अब इस विधि से उसे ठीक किया जा सकता है. इसके अलावा अक्सर लोगों के मुंह में अतिरिक्त दांत आने की समस्या भी आ जाती है. तो क्या यह तकनीक ऐसी समस्याओं से निजात दिला सकती है ?

डॉ. काम्बोज के मुताबिक कई मरीजों में अकल दाढ़ आड़ी-तिरछी निकल आती है, जो बेहद परेशान करती है. कभी-कभी दो दांत एक साथ एक ही रुट से निकल आते हैं, यहां तक कि कुछ मरीजों में वे बाहर से दिखाई तक नहीं देते. लेकिन अब ऐसे अतिरिक्त दांत मरीज की बोन ग्राफ्टिंग में काम आएंगे। उन्होंने बताया कि यह तकनीक अब उत्तराखण्ड में आ चुकी है. बहुत जल्द लोगों को इस आधुनिक तकनीक का फायदा मिलने लगेगा.
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