यादों में चिट्ठियां !
चंदन सिंह नेगी : चिट्ठियां अपनी भावनाओं को उन मित्रों – संबंधियों तक पहुंचने का सशक्त माध्यम रहा जो सैकड़ों मील दूर रह कर भी दिल के बहुत समीप रहे । दिल के पास होने के कारण वे संभाल – सहेज कर भी रखी जाती थी ।
आज चिट्ठियां चलन से लगभग बाहर हो गई हैं ।
संचार माध्यम और तकनीक के इस कालखंड में दूसरे माध्यमों ने चिट्ठियों का स्थान ले लिया है।वरिष्ठ साहित्यकार श्री शूरवीर रावत जी ने बीते तीन दशक में बहुत धैर्य से संजोकर रखी चिट्ठियां सार्वजनिक करने का निर्णय लिया है । उन्होंने इन्हें एक पुस्तक के रुप में प्रकाशित किया है ।
” खट्टी मिट्टी -तुमारि चिट्ठी ” पुस्तक में उन्होंने एक सौ पैंतीस चिट्ठियां प्रकाशित करने का साहसिक कार्य किया है। बारामासा पत्रिका के संपादन के समय उनके साहित्यिक मित्रों, लेखकों और पत्रिका के पाठकों द्वारा लिखी चिठ्ठियां भी इस पुस्तक में प्रकाशित की गईं हैं। वास्तव में यह पुस्तक एक दस्तावेज है जो आज के पाठक के लिए चिट्ठियों का अनूठा लेकिन छोटा सा अनुभव – संसार प्रस्तुत करता है।
श्री शूरवीर रावत जी लंबे समय से लेखन में सक्रिय हैं। इससे पूर्व विभिन्न विषयों पर उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।
बारामासा प्रकाशन बंजारावाला देहरादून द्वारा प्रकाशित “खट्टी मिट्ठी-तुमारि चिट्ठी” पुस्तक का मूल्य मात्र 150रु है। चिट्ठियों के भाषा – शिल्प , शैली और भाव में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह पुस्तक निःसंदेह उपयोगी होगी।