अंकिता को न्याय दिलाने के लिए महिलाओं ने सिर तक मुंडवा दिए!
देहरादून। एक साल पहले ऋषिकेश के पास गंगा भोगपुर में बीजेपी नेता के बेटे के रिजॉर्ट में हुई पौड़ी के दोभ श्रीकोट गांव रहने वाली अंकिता भंडारी की हत्या के मामले में वीआईपी का नाम छिपाना राज्य सरकार को भारी पड़ सकता है। पिछले साल 18 सितंबर को हुई यह घटना 19-20 सितंबर को सामने आई थी। इसके बाद से राज्यभर में उग्र प्रदर्शन हुए थे। 2 अक्टूबर को नागरिक संगठनों की ओर से पूरे राज्य में सफल बंद किया गया था। बाद में हो-हल्ला कुछ कम हुआ तो सरकार को लगा लोग अपनी आदत के अनुसार इस मामले को अब भूल चुके होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक वर्ष बाद अंकिता भंडारी हत्या का मामला एक बार उग्र आंदोलन के साथ सामने आया है। हत्याकांड के एक साल पूरा होने पर बीते 18 सितम्बर को राजधानी देहरादून सहित राज्यभर में एक बार फिर लोग सड़कों पर उतर आये। सरकार से लगातार यह मांग की जा रही है कि उस वीआईपी का नाम सार्वजनिक किया जाए, जिसे स्पेशल सर्विस देने के लिए अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था। लेकिन, सरकार इस पर मौन है।
इस बीच कांग्रेस लगातार अंकिता भंडारी के मामले को लेकर आवाज उठाती रही है। हत्याकांड के बाद हुए तमाम आंदोलनों और राज्य बंद को सफल बनाने में कांग्रेस लगातार सक्रिय रही। बीते 18 सितम्बर को हुए प्रदर्शनों में भी कांग्रेस की भागीदारी रही। लेकिन इसके बाद भी राज्य सरकार इस मांग की अनदेखी करती आ रही है। इससे नाराज प्रदेश महिला कांग्रेस गुरुवार 21 सितंबर को एक बार फिर देहरादून में सड़कों पर नज़र आई। इसके लिए सीएम आवास का घिराव करने तमाम कांग्रेस नेता महिला कांग्रेस के समर्थन में साथ खड़े दिखे।
अंकिता के मामले में वीआईपी नाम बताने सहित बेरोजगारी, महंगाई और अन्य मसलों को लेकर महिला कांग्रेस ने राजपुर रोड से मुख्यमंत्री आवास के लिए कूच किया। इस आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने की घोषणा की गई थी। इस कूच में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल रहे।
मुख्यमंत्री आवास से पहले की हाथी बड़कला के पास पुलिस ने बैरिकेड लगातार जुलूस को रोक दिया। इस पर महिलाएं सड़क पर ही बैठ गईं और सरकार विरोधी नारे लगाने लगीं। इस दौरान पुलिस और कार्यकर्ताओं के बीच तीखी झड़पें भी हुईं।

इस नारेबाजी और नोकझोंक के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ज्योति रौतेला ने अंकिता को न्याय दिलाने की मांग को लेकर सिर मुंडाने की घोषणा कर दी और बीच सड़क पर ही ज्योति रौतेला और महिला कांग्रेस से जुड़ी एक अन्य नेता ने सिर मुंडवा लिया। ये तस्वीरें लाइव हजारों को संख्या में सोशल मीडिया पर तैरने लगी।
उत्तराखंड में यह पहला मौका था, जब सरकार पर दबाव बनाने के लिए महिलाओं को सिर तक मुंडवाना पड़ा। इससे पहले महिलाएं सिर मुंडवाने की घोषणा करने की खबरें तो सामने आती रही हैं, लेकिन किसी ने इस तरह का कदम नहीं उठाया था।
ज्योति रौतेला ने कहा कि जिस तरह से राज्य की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इस मामले में वीआईपी का नाम छिपा रही है और जिस तरह से लगातार तथ्यों और सबूतों के साथ पहले दिन से ही छेड़छाड़ की गई, वह बेहद शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि सरकार को शर्म आए इसलिए उन्होंने सिर मुंडवाया है, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह बेशर्मों की सरकार है, उन्हें शर्म नहीं आती। एक बेटी की जघन्य हत्या के बाद जिस पार्टी को शर्म नहीं आई और अपने नेता को बचाने का प्रयास करती रही, उस पार्टी को एक बेटी के सिर मुंडवाने पर शर्म आएगी, इस बात की कोई उम्मीद नहीं है।

पिछले एक साल से कांग्रेस समय-समय पर अंकिता के मामले को उठाती रही है। कांग्रेस नेता मनीष खंडूरी इस मामले में न्याय यात्रा तक निकाल चुके हैं। वहीं पूर्व सीएम हरीश रावत सोशल मीडिया के जरिए बार-बार राज्य सरकार को याद दिलाते रहे हैं कि अंकिता मामले का वीआईपी कौन है, उसका नाम सार्वजनिक किया जाए। लेकिन सरकार ने अब तक ऐसा नहीं किया है। 18 सितम्बर को भी अंकिता की हत्या की बरसी पर देहरादून में मशाल जुलूस और कैंडिल मार्च का आयोजन किया गया था। इस मार्च में दर्जनों संगठनों के हजारों लोगों ने हिस्सा लिया और फरवरी में हुए बेरोजगारों के बाद एक बार फिर देहरादून की सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।
18 सितंबर के प्रदर्शन में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे और देहरादून के तमाम जनसंगठन भी। सामाजिक मुद्दों को लेकर लगातार सक्रिय रहने वाली धाद संस्था के अलावा इस प्रदर्शन में पहाड़ी स्वाभिमान सेना, उत्तराखंड महिला मोर्चा, जन संवाद समिति, उत्तराखंड इंसानियत मंच, एसडीसी फाउंडेशन आदि ने भी हिस्सा लिया था। देहरादून के अलावा 18 सितंबर को ऋषिकेश, पौड़ी ,श्रीनगर, कर्णप्रयाग, रामनगर आदि जगहों पर भी लोगों ने सड़कों पर उतर कर अंकिता के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने और इस मामले में वीआईपी का नाम उजागर करने की मांग की।
फिलहाल प्रदेश महिला कांग्रेस ने इस मामले को लेकर सिर मुंडवाकर एक बार फिर से अंकिता हत्याकांड के मामले को हो रहे आंदोलन को नया मोड़ दे दिया है। न सिर्फ कांग्रेस बल्कि तमाम जन संगठन भी इस मामले को लेकर मुखर हो रहे हैं। ऐसे में लगता नहीं कि अंकिता भंडारी हत्या कांड मामला बीजेपी नेतृत्व वाली राज्य सरकार का पीछा इतनी आसानी से छोड़ने वाला नहीं है। क्योंकि इस मामले को लेकर आमजन अंतरिक तौर पर बेहद आहत है। ऐसे में लोगों के अंदर सुलग रही चिंगारी किस रूप में सामने आएगी कहा नहीं जा सकता है। लिहाजा ऐसे में सरकार को वक्त रहते जनता की भावनाओं को समझकर त्वरित न्याय संगत फैसला लेने की जरूरत है।