वैसाखी पर यहां भी होती है नंदादेवी के धर्म भाई लाटू देवता की पूजा
मीडिया लाइव : यहाँ हर साल वैसाखी पर लाटू देवता की भव्य पूजा अर्चना होती है. ग्रामीण और इलाके के लोग सीजन की पहली फसल को भगवान लाटू को अर्पित करते हैं. जिसे अज्ञाल कहा जाता है. यह मन्दिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के वीरोंखाल ब्लॉक की साबली पट्टी के नौगाँव नामक स्थान पर स्थापित है। इस मंदिर में किसी भी तरह से पूजा-अर्चना करने पर कोई भेदभाव नहीं होता. जबकि उत्तराखंड के कुछ स्थानों पर लाटू देवता की पूजा की विशेष व्यवस्था होती है. जिसका विधि विधान बेहद अलग होता है. लेकिन नौगाँव के लाटू देवता के यहां हर किसी को पूजा करने की पूर्ण स्वतंत्रता है. उत्तराखंड के धार्मिक मान्यताओं के जानकारों और लोक कथाओं के मुताबिक़, लाटू देवता देवभूमि उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा के धर्म भाई हैं और इसी रूप में उन्हें माने और पूजे जाने की मान्यता है. राज्य की सबसे लंबी पैदल जात यानी यात्रा श्रीनंदा देवी की राज जात यात्रा का बारहवां पड़ाव चमोली जनपद के देवाल क्षेत्र के वाण में भी लाटू देवता का मंदिर है. इस मंदिर के कपाट साल में एक ही दिन वैशाख माह की पूर्णिमा को खुलते हैं और मान्यता के अनुसार यहाँ पुजारी आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर कपाट खोलते हैं। श्रद्धालु दूर से ही लाटू देवता का दर्शन कर पुण्यभागी बनते हैं। जबकि साबली गढ़ क्षेत्र के नागांव में लाटू देवता का मंदिर हमेशा खुला रहता है और दर्शन पर भी किसी तरह की कोई बंदिश नहीं है. लेकिन वैसाखी के मौके पर हर साल विशेष पूजा होती है. इस शुभ अवसर पर इस दिन यहां एक मेले का सा माहौल रहता है.
खास बात यह है कि जहां वाण के लाटू के मंदिर सहित देश के त्र्यंबकेश्वर, बांकेबिहारी, कोल्हापुर महालक्ष्मी मन्दिर विभिन्न मंदिरों में स्त्री-पुरूष के बीच पूजा करने पर रोक है. वहीं नौगाँव के लाटू देवता के इस मंदिर में महिला और पुरुष सहित किसी भी श्रद्धालु को मंदिर के अन्दर जाकर पूजा और दर्शन करने की पूरी स्वतन्त्रता है. यहां पुजारी को भी सामान्य तौर पर लाटू देवता की पूजा करने की परम्परा है। श्रद्धालु साल भर कभी भी यहां मन्नत माँगने के लिए आ सकते हैं. लेकिन मन्नत पूरी होने पर सिर्फ वैसाखी के मौके पर पूर्णिमा के दिन ही यहां लाटू देवता को चढ़ावा चढ़ाये जाने की परम्परा है.यहाँ लोग संतान प्राप्ति और अन्य तमाम मनौतियों के लिए हर साल इस अवसर पर पहुँचते हैं.