देश में ऐसे हुआ था पहली बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ
मीडिया लाइव, देहरादून : आजाद मुल्क और दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में सबसे पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 में हुआ। इसी दिन पहली बार देश के लोगों ने अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लिए मतदान किया। उस वक्त पूरे देश में मजबूत संघीय ढाँचे को लोकतंत्र के बीज रूप कर मजबूत आधारशिला रखी जा रही थी। इसके लिए राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ शुरू किए गए। तब लोकसभा की 497 और राज्यों की विधानसभा की 3283 सीटों के लिए मतदान में 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 पंजीकृत मतदाताओं ने भाग लिया।
भारत में 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच आम चुनाव हुए। भारत निर्माण के महान राजनेताओं ने 15 अगस्त 1947 को आजादी के मिलने के बाद महज दो साल के अंदर एक चुनाव आयोग की स्थापना कर दी थी। इसके बाद ठीक एक महीने बाद ही भारतीय संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम पारित किया, इसके तहत देश के हर राज्य के लिए संसद के सदनों और विधानमंडल के सदनों के लिए चुनाव का संचालन करने की शक्तियां चुनाव आयोग को प्रदान की गयी। इसे भारतीय संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत आयोजित किया गया था, इसके बाद 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया। इस महत्वपूर्ण आयोग की जिम्मेदारी मार्च 1950 में सुकुमार सेन के कन्धों पर पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप डाली गयी। उस वक्त ज्यादातर राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए थे।
देश में हुए पहले चुनाव में लोकसभा की 489 सीटों के लिए कुल 1,949 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। लगभग 36 करोड़ की कुल आबादी में से 17 करोड़ से अधिक लोग मतदान करने के पात्र थे, उस जमाने के हिसाब से आयोजित हुआ यह सबसे बड़ा चुनाव बन गया। नई-नई चुनावी प्रक्रिया होने के बावजोड़ लोगों ने इस में दिलचस्पी दिखाई और इस चुनाव का मतदान प्रतिशत 45.7% दर्ज किया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने 489 सीटों में से 364 सीटें और कुल मतदान का 45% जीतकर भारी जीत हासिल की। यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी से चार गुना अधिक वोट थे। जवाहरलाल नेहरू देश के पहले संसदीय दल के नेता के रूप में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधान मंत्री बने।
इससे पहले 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाने के बाद संविधान सभा अंतरिम संसद के रूप में कार्य करती रही। अंतरिम कैबिनेट का नेतृत्व भी जवाहरलाल नेहरू ने ही किया और इसमें विभिन्न समुदायों और पार्टियों के 15 सदस्य शामिल थे। इस मंत्रिमंडल के विभिन्न सदस्यों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया और चुनाव लड़ने के लिए अपनी-अपनी पार्टियाँ बनाईं। भारत की 1951 की जनगणना के अनुसार 361,088,090 की जनसंख्या में से ( जम्मू और कश्मीर को छोड़कर) कुल 173,212,343 मतदाता पंजीकृत थे। तब 21 वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक मतदान करने के पात्र थे। मतदान केंद्र पर प्रत्येक उम्मीदवार को अलग-अलग रंग की मतपेटी आवंटित की गई थी, जिस पर प्रत्येक उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा हुआ था। मतदाता सूची को टाइप करने और मिलान करने के लिए छह महीने के अनुबंध पर 16,500 क्लर्कों को नियुक्त किया गया था और नामावली को मुद्रित करने के लिए 380,000 रीम कागज का उपयोग किया गया था।
देश की अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए कठोर जलवायु और चुनौतीपूर्ण व्यवस्था के कारण चुनाव को 68 चरणों में करना पड़ा, क्योंकि तब देश के पास बहुत ज्यादा संसाधन नहीं थे। इस चुनाव के लिए देशभर में कुल 196,084 मतदान केंद्र बनाए गए, जिनमें से 27,527 बूथ महिलाओं के लिए विशेषरूप से आरक्षित किए गए थे। सर्दियों का मौसम होने के कारण हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों में फरवरी-मार्च 1952 में मतदान हुआ। 1967 तक कश्मीर में लोकसभा सीटों के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ था। हिमाचल प्रदेश में पहली लोकसभा के लिए 1951 में मतदान हुआ था, फरवरी और मार्च में वहां का मौसम ख़राब रहता है, भारी बर्फबारी के कारण आवाजाही बाधित होती है। ऐसे में चुनाव के पहले वोट हिमाचल प्रदेश के चीनी तहसील (जिला) में डाले गए थे।
मतदाताओं ने भारत की संसद के निचले सदन के लिए 489 सदस्यों को चुना । इन्हें 25 भारतीय राज्यों में 401 निर्वाचन क्षेत्रों में आवंटित किया गया था। 314 निर्वाचन क्षेत्रों में फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली का उपयोग करके एक सदस्य का चुनाव किया जाता था। 86 निर्वाचन क्षेत्रों में दो सदस्य चुने गए, एक सामान्य श्रेणी से और एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से । तीन निर्वाचित प्रतिनिधियों वाला एक निर्वाचन क्षेत्र था। ये बहु-सीट निर्वाचन क्षेत्र संविधान के तहत समाज के पिछड़े वर्गों को दिए गए आरक्षण को पूरा करने के लिए मौजूद थे। बाद में उन्हें 1960 के दशक में समाप्त कर दिया गया।
तब संविधान में भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित दो एंग्लो-इंडियन सदस्यों का भी प्रावधान था।, इन राजनीतिक दलों ने लड़ा चुनाव
इस चुनाव के लिए देशभर से कुल 53 पार्टियों और 533 निर्दलीय उम्मीदवारों ने 489 सीटों पर चुनाव लड़ा। संविधान सभा के तहत अंतरिम सरकार के रूप में काम कर रहे विभिन्न संगठनों से ताल्लुक रखने वाले कई मंत्रियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दे कर चुनाव लड़ने के लिए अपनी-अपनी पार्टियाँ बनाईं। इनमें से ही एक रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अक्टूबर 1951 में जनसंघ की स्थापना की और इनके अलावा कानून मंत्री बीआर अंबेडकर ने शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (जिसे बाद में रिपब्लिकन पार्टी का नाम दिया गया ) को पुनर्जीवित किया। इतना ही नहीं तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पुरूषोत्तम दास टंडन ने नेहरू से मतभेद के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
अन्य दल जो आगे आने लगे उनमें किसान मजदूर प्रजा परिषद शामिल थी, जिसके प्रमुख प्रेरक आचार्य कृपलानी थे, राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाली सोशलिस्ट पार्टी, और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, हालाँकि, ये छोटी पार्टियाँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ चुनावी रुख बनाने में पूरी तरह असफल रहीं। इस तरह से भारत में पहले चुनाव की शुरुआत हुई।