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उत्तराखंड में “बग्वाळ” की सुबह की ये परम्परा बेहद अनूठी है !

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मीडिया लाइव, पौड़ी गढ़वाल : उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में ग्रामीण आज दीपावली यानी बग्वाळ के मौके पर सुबह पशु पूजन सम्पन्नं हुआ। इसके लिए यहाँ सुबह से ही घर में पकवान बनने के साथ पशुओं की पूजा की सदियों से एक अनूठी परम्परा रही है। इसमें पशुधन से होने वाली आर्थिकी को धन धान्य और लक्ष्मी आगमन से जोड़ कर देखा जाता है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड में सदियों से रही यह अनूठी परम्परा अपने आप में विशेष स्थान रखती है. जिसमें अपने तमाम पालतू पशुओं को जिनमें सबसे पूजनीय गोवंश-गाय, बैल के अलावा महिष वंशी भैंस सहित अन्य पशुधन जिनमें बकरियों, भेड़ों के आदि के सींगों पर सरसों का तेल लगा कर श्रृंगार किया जाता है, उन्हें हल्दी-चावल का टीका लगाने के साथ ही शुद्ध घर में बनी हुई घी की धूप-अगरबत्ती देकर पूजा जाता है और पूड़ी-और दाल की पकौड़ियों के साथ ही साफ और शुद्ध मोटे अनाज के आटे की पिंडी बनाकर भोग कराया जाता है, इन पिण्डियों को कई इलाकों में एक विशेष तरह के फूल से सजाया जाता है। जो इन पशुओं के लिए औषधीय गुणों से युक्त होने के कारण बेहद लाभकारी माना जाती है।

बता दें कि दीपावली पर्व को लेकर देश दुनिया के साथ ही देवभूमि में भारी उत्साह नजर आ रहा है। उत्तराखण्ड के पहाड़ी ग्रामीण क्षेत्र में आज भी दीपावली (बग्वाळ) परंपराओं में “गौ पिंडी पूजन” तहत आज सुबह अपने अपने गौ शालाओं में जाकर गौ वंशो के साथ ही सभी पशुओं का पूजन करने और उन्हें तिलक पिठाई लगाने के साथ मोटे पोष्टिक अनाजों से बने लड्डू नुमा भोग खिलाया गया।

कई जगहों पर इन पशुओं को गेंदे गुलदावरी की माला गले पहनाकर उनकी पूजा की गयी और नमन करते हुए इन पशु धन से आशीष लेने की परम्परा का निर्बाह किया गया। इसके बाद इन पशुओं को घास चुगने को ले जाया गया।