थिेएटर पर जीवंत होती लोककथाएं
आज विश्व रंगमंच दिवस है, हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भी रंगमंच की समृद्ध परंपरा रही है। खास तौर पर यहां की संस्कृति से सरोबार लोकनाट्य इसे अलग पहचान दिलाते हैं। लोकनाट्य रंगमंच की वो विधा है जिसे समाज में प्रचलित ऐतिहासिक कथाओं किवदंतियों को पिरोया जाता है। समय के साथ नए प्रयोगों और रंगकर्मियों की कोशिशों ने लोकनाट्यों के प्रस्तुतिकरण को बेहतर बनाकर देश दुनिया के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाया है। यहां पेश है, कुछ लोकनाट्यो के बारे में-
रम्माण
रामायण की कथा को मुखौटा शैली में प्रस्तुत करता ये लोकनाट्य अभीभूत करने वाला है। चमोली जिले के सलूडृ डुंग्रा और आस पास के इलाकों में अब भी ये परंपरा जीवंत है और कभी इसे अनुष्ठान के रूप में आयोजित किया जाता है, जिसे बाद में डा.डीआर पुरोहित, सुरेश काला, अरविंद मुद्गिल जैसे उत्साही रंगकर्मियों ने देश दुनिया के सामने पेश किया। यूनेस्को ने इसे अपने विश्व धरोहर में भी शामिल किया है।
चक्रव्यूह
महाभारत के अंश चक्रव्यूह पर आधारित ये नाटक चमोली जिले की अलकनंदा घाटी की सांस्कृतिक धरोहर है। विद्याधर श्रीकला केंद्र श्रीनगर व शैलनट से जुड़े रंगकर्मियों ने इसको रंगमंच की कसौटी पर कसने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शित किया, ओपन थियेटर शैली में प्रस्तुत होने वाले इस नाटक की भव्यता देखते ही बनती है। इसके साथ ही महाभारत युद्ध के विभिन्न अंश कमलव्यूह, गरुड़व्यूह आदि भी इसी शैली में प्रस्तुत किए जाते हैं।