चुनाव का असर: तेल कीमतों की बढ़ोतरी पर रोक
मीडिया लाइव : देश में चुनाव अचार संहिता लगने वाली है. लिहाजा इसका सीधा असर पेट्रोल की कीमतों में लगातार हो रही बृद्धि पर फिलहाल बिराम लगाने के तौर पर देखा जा सकता है. लेकिन चुनावी साल होने का असर लोग खुद महसूस कर सकते हैं. हालाँकि कि भारत जैसे देश में लोगों को हर चीज याद दिलानी पड़ती है, ऐसा बुद्धिजीवियों का मानना है.
बताते चलें कि तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर रोजाना पेट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ोतरी करती हैं, लेकिन 2019 में एक जनवरी से अब तक 12 मौके ऐसे आए जब कंपनियों ने पेट्रोल के दाम में बढ़ोतरी नहीं की। डीजल के मामले में 12 बार ऐसा हुआ। ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए कच्चे तेल की अधिकतम आपूर्ति आयात से करता है. जिसका असर यहाँ सीधे बाजार से होते हुए रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है. लिहाजा महंगाई यहाँ हमेशा चुनावी मुद्दों में शामिल रहा है. ऐसे में केंद्र सरकार नहीं चाहती की तेल की कीमतों में फिलहाल बढ़ोतरी हो] और इसका खामियाजा सत्ता गंवाने के तौर पर चुकाना पड़े. इसलिए सरकार चुनाव से पहले तेल की कीमतों को हर हाल में नियंत्रण में रखना चाहती है, क्योंकि इस मामले में जरा सी चूक से जनता भड़क सकती है।
सूत्रों का कहना है कि तेल कंपनियों को सरकार का मौखिक निर्देश है कि चुनाव तक जैसे भी हो तेल की कीमतों को स्थिर रखा जाए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल होने के बावजूद कंपनियां घरेलू बाजार में तेल की कीमतों को नियंत्रित रखें। जो घाटा हो उसे खुद वहन करें।
सरकार के लिए राहत की बात है कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत स्थिर है। फिलहाल कच्चे तेल की कीमत 65-66 डॉलर प्रति बैरल से आसपास घूम रही है। अगर देश के बाहर कच्चे तेल की कीमत ज्यादा बढ़ती है तो सरकार के लिए मुश्किल पैदा हो जाएगी।
कीमत ज्यादा बढ़ने से सरकार को तत्काल कोई नीति तैयार करनी होगी, क्योंकि तेल कंपनियां एक सीमा से ज्यादा घाटा उठाने की स्थित में नहीं हैं। ऐसे में उन्हें राहत देने के लिए सरकार को बैकडोर से कोई उपाय करना पड़ सकता है।
तेल कंपनियों के डेटा को देखा जाए तो सरकार की रणनीति साफ दिख जाती है। 9 फरवरी के बाद से वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दाम तो बढ़े, लेकिन छह मौके ऐसे रहे जब तेल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल की कीमत में बढ़ेतरी नहीं है। 5 से 8 मार्च के दौरान तेल की कीमत में कोई बदलाव नहीं किया गया।
एक बिजनेस एनेलिस्ट का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुई बढ़ोतरी के बाद भी तेल कंपनियां संयम बरत रही हैं। चुनाव के दौरान घाटे को खुद झेलकर वे सरकार को मुसीबत से बचा रही हैं।
एजेंसी के सूत्रों का कहना है कि एक तेल कंपनी के अधिकारी ने माना कि सरकार के निर्देश पर तेल कंपनियां दाम बढ़ाने से बच रही हैं, लेकिन उनके पास यह आंकड़ा नहीं था कि इससे तेल कंपनियों को कितना नुकसान हुआ? उनका कहना था कि चुनाव के खत्म होने तक तेल कंपनियां इसी ढर्रे पर चलती रहेंगी।