राजभवन ने पंचायती राज संशोधन अध्यादेश मंजूरी के बिना भेजा वापस
देहरादून: उत्तराखंड राज्य में 10,760 त्रिस्तरीय पंचायतों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पंचायतों में तैनात प्रशासकों का कार्यकाल खत्म होने के बाद संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। जबकि दूसरी तरफ़ प्रशासकों के कार्यकाल को बढ़ाने को राजभवन भेजा गया पंचायती राज संशोधन अध्यादेश मंजूरी के बिना ही राजभवन ने वापस भेज दिया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस अध्यादेश का राजभवन ने विधिक परीक्षण करवाया था, जिसमें कुछ कमियां पाई गईं। जिसके चलते राजभवन ने इस अध्यादेश को वापस विधायी विभाग को भेज दिया है।
पंचायतों पर संवैधानिक संकट: नवंबर 2024 में त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद पंचायत को प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। साथ ही उस दौरान सरकार ने यह निर्णय लिया था कि प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही चुनाव कर लिए जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और पंचायतों में तैनात प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो गया। 28 मई को ग्राम पंचायत, 30 मई को क्षेत्र पंचायत और 1 जून को जिला पंचायतों मैं तैनात प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। प्रशंसकों का कार्यकाल समाप्त होने की स्थिति में पंचायती राज विभाग की ओर से आनन-फानन में पंचायती राज संशोधन एक्ट के अध्यादेश को राजभवन भेजा गया था।
राजभवन ने संशोधन अध्यादेश लौटाया: धामी सरकार को ये उम्मीद थी कि राजभवन से संशोधन अध्यादेश को मंजूरी मिल जाएगी. लेकिन राजभवन ने अध्यादेश को वापस विधायी विभाग को भेज दिया है। राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन ने बताया कि-
- राजभवन से संशोधन अध्यादेश के वापस लौटने की मुख्य वजह यही है कि विधायी विभाग ने कुछ विषयों को उठाया था, लेकिन विधायी विभाग की आपत्तियों का निस्तारण किए बिना ही अध्यादेश को राजभवन भेज दिया गया. ऐसे में इस संशोधन अध्यादेश में कुछ चीजें स्पष्ट नहीं हो रही हैं, जिनकी जानकारी मांगी गई है.
-रविनाथ रामन, सचिव, राज्यपाल-
मुखिया विहीन हुईं 10,760 त्रिस्तरीय पंचायतें: बता दें कि पंचायतों में तैनात प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद ये पंचायतें मुखिया विहीन हो गई हैं। साथ ही पंचायतों में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है।