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खनन : 160 इकाइयां निलंबित अन्य पर भी रोक की तैयारी…

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मीडिया लाइव, देहरादून: पूर्व सीएम व हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के संसद में उठाए गए अवैध खनन के मामले का असर दिखाई देने लगा है। राज्य की राजनीति गरमाने वाले इस मुद्दे से राज्य के पर्यावरण प्रेमी भी इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को लेकर चिंतित रहे हैं। यही वजह है कि इन चिंताओं को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के निर्देशों के अनुपालन में एक ठोस कदम उठाया गया है। जिसमें उत्तराखंड खनन विभाग ने एक पांच सदस्यीय समिति बनाई है, जो खनन के पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन कर रही है।

उत्तराखंड खनन विभाग ने जो पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित की है, वह राज्य में खनन के भूगर्भीय प्रभावों की पड़ताल कर रही है। यह समिति “जियो-टेक्टोनिक जोन” के पारिस्थितिकी तंत्र और “भूकंपीय स्थिरता” पर खनन के प्रभावों का विश्लेषण करेगी। समिति की अध्यक्षता वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक कर रहे हैं। इसमें भारतीय सर्वेक्षण विभाग के भूकंप विशेषज्ञ, आईआईटी रुड़की के जानकार, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के संयुक्त निदेशक (सदस्य सचिव) शामिल हैं।

एनजीटी के निर्देश पर कार्रवाई: एनजीटी के आदेश के बाद खनन विभाग ने तत्काल विशेषज्ञ समिति गठित की, वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी राज्य में खनन पर रोक के निर्देश जारी किए। हालांकि, विशेषज्ञ समिति ने नदी तल (आईबीएम) खनन को भूगर्भीय प्रभावों से अलग माना, जिसके चलते नदियों में खनन पर रोक नहीं लगाई गई। फिर भी, विशेष खनन से जुड़ी 160 माइनिंग इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने निलंबित कर दिया।

बागेश्वर में रोक, अन्य जिलों में तैयारी: बागेश्वर में विशेष खनन के 160 लाइसेंस निलंबित किए गए हैं, जिनमें खड़िया, चूना पत्थर, मैग्नेसाइट, डोलोमाइट और सिलिका सैंड शामिल हैं। ये चट्टानी खनन जियो-टेक्टोनिक जोन और भूकंपीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं। विशेषज्ञ समिति इसका अध्ययन कर रही है और रिपोर्ट के बाद स्थिति स्पष्ट होगी।

भूकंपीय संवेदनशीलता का आकलन: विशेषज्ञ समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट में पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग को भूकंपीय रूप से संवेदनशील बताया गया, जबकि देहरादून, टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा और बागेश्वर में टेक्टोनिक तनाव कम है। हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट राज्य को हिमालय बेल्ट और सिंधु-गंगा मैदान में विभाजित करता है। हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल का अधिकांश हिस्सा फ्रंटल हिमालय में, बाकी जिले हिमालय बेल्ट में आते हैं।

उत्तराखंड में नदी तल (3 मीटर गहराई तक) और सोपस्टोन, मैग्नेसाइट, सिलिका सैंड जैसे खनिजों का खनन होता है। वन क्षेत्रों में उत्तराखंड वन विकास निगम खनन करता है, जहां नदी किनारे का 25% हिस्सा संरक्षित और बीच का 50% क्षेत्र खनन के लिए उपयोग होता है। समिति ने नदी तट के दोनों ओर 15% या 10 मीटर क्षेत्र को खनन-मुक्त रखने की सिफारिश की।

राज्य में नदी तल खनन के लिए 6569 हेक्टेयर क्षेत्र चिन्हित है, जिसमें से 5796 हेक्टेयर देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर में है। इसमें 5077 हेक्टेयर वन विकास निगम और 719 हेक्टेयर निजी व्यक्तियों/कंपनियों को आवंटित है। समिति के अनुसार, हरिद्वार और उधम सिंह नगर में 3 मीटर तक मैनुअल नदी खनन से भूकंपीय खतरा नहीं है, न ही पर्वतीय जिलों में मानक खनन से जोखिम है।

खनन पर प्रतिबंध की योजना: बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी में चट्टानी खनिजों (सोपस्टोन, मैग्नेसाइट, सिलिका सैंड) के खनन पर समिति अनुमति के पक्ष में नहीं है और अध्ययन जारी है। बागेश्वर में 160 इकाइयों के निलंबन के बाद अन्य जिलों में भी रोक की तैयारी चल रही है।