MEDIA LIVE : बिजली संकट : बिजली कटौती दूर करने के लिए भेजी 100 मेगावाट की मांग , जारी रहेगी अभी समस्या

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मीडिया लाइव : प्रदेश में बिजली की सालाना मांग 2468 मेगावाट है। विभिन्न परियोजनाओं से यहां 5211 मेगावाट बिजली पैदा होती है लेकिन राज्य कोटे के तहत 1320 मेगावाट बिजली ही मिलती है। यही कारण है की जरूरत के सापेक्ष राज्य में बिजली की उपलब्धता बेहद कम है। ऐसे में खासकर गर्मियों के मौसम में ऊर्जा जरूरते सामान्य के मुकाबले अधिक बढ़ जाती हैं। लेकिन दूसरी तस्वीर यह है कि इसी मौसम में ही पनबिजली का उत्पादन बढ़ जाता है। नदियों का जल बढ़ने से बिजली उत्पादन राज्य में बढ़ता है। लेकिन उत्पादन के मुकाबले राज्य के हिस्से में कम बिजली ही आती है।

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प्रदेशवासियों को भीषण गर्मी और लगभग पंद्रह घंटे के रोजे वाले दिनों में कम से कम हफ्ते भर और बिजली संकट झेलना पड़ेगा। रविवार को हरिद्वार के सिडकुल में लगभग 4 घंटे, ग्रामीण क्षेत्रों में 6-7 घंटे, ऊधम सिंह नगर में हर रोज तीन से पांच घंटे बिजली कटौती हो रही है। औद्योगिक उत्पादन पर भारी असर पड़ा है। खुद यूपीसीएल ने भी स्वीकार किया है कि वह एक सप्ताह में कटौती को नियंत्रण में लाएगा। मुख्यमंत्री की सख्ती के बाद यूपीसीएल ने 36 मेगावाट बिजली का इंतजाम किया लेकिन यह प्रदेश की मौजूदा मांग को पूरा करने के लिए नाकाफी है। प्रदेश को फिलवक्त 100 मेगावाट बिजली की जरूरत है।प्रदेश में बिजली की सालाना मांग 2468 मेगावाट है। विभिन्न परियोजनाओं से यहां 5211 मेगावाट बिजली पैदा होती है लेकिन राज्य कोटे के तहत 1320 मेगावाट बिजली ही मिलती है।

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एक नजर में उत्तराखंड में बिजली की उपलब्धता

  • राज्य की परियोजनाओं से कुल उत्पादन 5211
  • सालाना मांग 2468
  • राज्य कोटे से मिलती है 1320
    (मेगावाट में)

देशभर में भी है बिजली संकट

प्रदेश में लगातार हो रही बिजली कटौती पर पूर्व सीएम हरीश रावत के सोशल मीडिया पर उठाए गए सवाल पर गंभीर हो कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सख्ती के बाद यूपीसीएल के अफसरों ने भी कोशिशें तेज कर दी हैं। जिसके अनतरगत अब बीती रात को ही यूपीसीएल ने ऊर्जा मंत्रालय से बातचीत कर देर रात बोंगाईगांव पावर प्लांट, असम से 36 मेगावाट बिजली का इंतजाम किया। यूपीसीएल ने दावा किया कि हफ्तेभर में बिजली की उपलब्धता को और बढ़ा दिया जाएगा।

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ऊर्जा निगम मुख्यालय में आयोजित पीसी में ऊर्जा निगम के प्रवन्ध निदेशक अनिल कुमार ने बताया कि बिजली कटौती की समस्या देश भर में है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से गैस आधारित पावर प्लांट बंद हैं। कोयला आधारित प्लांट भी मुश्किल हालात में हैं। नेशनल एनर्जी एक्सचेंज में भी बिजली की उपलब्धता कम और दर महंगी है। वहीँ उन्होंने बताया कि राज्य में हालात पर नियंत्रण पाने के लिए निगम की तरफ से हर तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा देर रात केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय से बातचीत करके गैर आवंटित कोटे के तहत 100 मेगावाट बिजली की मांग की गई है। इसमें से असम से 36 मेगावाट बिजली उपलब्ध हुई। यूपीसीएल अन्य विकल्पों से बिजली खरीदने की कोशिशों में जुटा है।

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बढती गर्मी और उद्योगों की खपत की वजह से बिजली की डिमांड 45 मिलियन यूनिट का आंकड़ा छू रही है। उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में चार से छह घंटे, यूपी में रोजाना छह घंटे, आंध्र प्रदेश में दस घंटे, झारखंड में शहरी क्षेत्रों में चार और ग्रामीण क्षेत्रों में सात घंटे, पंजाब में उद्योगों में दो से चार घंटे, शहरी क्षेत्रों में चार और ग्रामीण क्षेत्रों में पांच घंटे, महाराष्ट्र के गांवों में आठ घंटे, तमिलनाडु में चार घंटे की कटौती हो रही है।

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बिजली की खपत 20 फीसदी बढ़ी इंडस्ट्रियल सेक्टर में

यूपीसीएल के एमडी अनिल कुमार ने बताया कि उद्योगों में बिजली की खपत अचानक बढ़ गई है। सामान्य से करीब 20 प्रतिशत अधिक बिजली खपत हो रही है। वहीं, अप्रैल माह में तापमान बढ़ोतरी की वजह से भी खपत में पांच से दस फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि पिछले साल इन दिनों बाजार में बिजली करीब 3.75 रुपये प्रति यूनिट थी जो कि आज 11 से 12 रुपये तक खरीदनी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में 2468 मेगावाट की सालाना डिमांड है, जिसके सापेक्ष पैदा होने वाली 5211 मेगावाट बिजली में से राज्य कोटे के तहत 1320 मेगावाट बिजली मिलती है।

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उत्पादन 35 प्रतिशत और भार बढ़ा 443 प्रतिशत

यूपीसीएल के मुताबिक, वर्ष 2001 में 8.3 लाख बिजली उपभोक्ता थे, जिनकी संख्या इस साल मार्च में 27.28 लाख पर पहुंच गई। उपभोक्ताओं की संख्या में 229 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। प्रदेश में 2001 में बिजली का भार 1466 मेगावाट था जो कि मार्च तक बढ़कर 7967 यानी 443 प्रतिशत बढ़ोतरी पर आ गया। इसके सापेक्ष, यूजेवीएनएल 2001 में 998 मेगावाट बिजली देता था जो कि अब 1356 मेगावाट तक आ गया है। यानी बिजली का उत्पादन केवल 35 फीसदी ही बढ़ा है।

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