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MEDIA LIVE : भूकानून को लेकर सीएम धामी ले सकते हैं बड़ा निर्णय!

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उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर बनाई गई कमेटी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। सीएम ने रिपोर्ट मिलने के बाद कहा कि भू-कानून से संबंधित सभी पक्षों की राय लेते हुए प्रदेश के विकास व प्रदेशवासियों के कल्याण हेतु निर्णय लेंगे।

देहरादून: उत्तराखंड को लेकर बनाई गई कमेटी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी  सौंप दी है। सीएम ने रिपोर्ट मिलने के बाद कहा कि भू-कानून से संबंधित सभी पक्षों की राय लेते हुए हम प्रदेश के विकास व प्रदेशवासियों के कल्याण हेतु निर्णय लेंगे. समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय-विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अपनी 23 संस्तुतियां सरकार को दी हैं।

80 पेज की रिपोर्ट तैयार: समिति ने राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार-विमर्श कर लगभग 80 पेज की अपनी रिपोर्ट तैयार की है। इसके अलावा समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक दी गई भूमि क्रय की स्वीकृतियों का विवरण मांग कर उनका परीक्षण भी किया है। समिति ने अपनी संस्तुतियों में ऐसे बिंदुओं को सम्मिलित किया है, जिससे राज्य में विकास के लिए निवेश बढ़े और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो। इसके साथ ही भूमि का अनावश्यक दुरूपयोग रोकने की भी अनुशंसा की है।

समिति ने वर्तमान में प्रदेश में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) यथा संशोधित और यथा प्रवृत्त में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह कतिपय प्रावधानों की संस्तुति की है।

वर्तमान में जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है. कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसॉर्ट/ निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है, इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहें और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है। समिति ने संस्तुति की है कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर से ना दी जाएं और शासन से ही अनुमति का प्रावधान हो।

वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी द्वारा प्रदान की जा रही है. हिमाचल प्रदेश की तरह ही ये अनुमति शासन स्तर से न्यूनतम भूमि की आवश्यकता के आधार पर प्राप्त की जाएं. वर्तमान में राज्य सरकार पर्वतीय एवं मैदानी में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभिन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक संस्था/फर्म/ कम्पनी/ व्यक्ति को उसके आवेदन पर दे सकती है।

उपरोक्त प्रचलित व्यवस्था को समाप्त करते हुए हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर दिया जाना उचित होगा. केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल/ रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट आदि को ही के आधार भूमि क्रय करने की अनुमति शासन स्तर से दी जाए। अन्य प्रयोजनों हेतु लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था लाने की समिति संस्तुति करती है।

वर्तमान में गैर कृषि प्रयोजन हेतु खरीदी गई भूमि को 10 दिन में SDM धारा-143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करेगा। लेकिन, क्रय अनुमति आदेश में 2 वर्ष में भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन में करने की शर्त रहती है। यदि निर्धारित अवधि में उपयोग ना करने पर या किसी अन्य उपयोग में लाने/विक्रय करने पर राज्य सरकार में भूमि निहित की जाएगी, यह भी शर्त में उल्लखित रहता है. यदि 10 दिन में गैर कृषि प्रयोजन हेतु क्रय की गई कृषि भूमि को “गैर कृषि” घोषित कर दिया जाता है, तो फिर यह धारा-167 के अंतर्गत राज्य सरकार में (उल्लंघन की स्थिति में) निहित नहीं की जा सकती है।