MEDIA LIVE : क्लेम नहीं देने पर इंश्योरेंस कंपनी पर लगाया जुर्माना
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मीडिया लाइव: अब उपभोक्ताओं के साथ चालाकी या मनमानी से धोखा देने या छुपी शर्तों के बूते भ्रमित करने की कोशिशें की गईं तो, उसका हर्जाना ब्याज सहित चुकाना पड़ेगा। यह स्थाई लोक अदालत देहरादून ने एक फैसले से साफ कर दिया है। दरअसल एक मामले में आग में धवस्त हुए माल का बीमा धारक फर्म को क्लेम नहीं देने पर इंश्योरेंस कंपनी पर स्थाई लोक अदालत ने यहां जुर्माना लगाया है।
मामला देहरादून का है यहां पालिसी लेने के बावजूद बीमा कंपनी ने तमाम बहाने बनाते हुए बीमा धारक को क्लेम नहीं दिया। पीड़ित ने क्लेम के लिए स्थाई लोक अदालत में अपील की । अदालत ने बीमा कम्पनी को 21,87,407 रुपए बीमा राशी व पांच हजार मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में चुकाने का आदेश दिया। इसके अलावा क्लेम की राशि अक्टूबर 2019 से छः प्रतिशत ब्याज के साथ देने को कहा। याची ने स्थाई लोक अदालत, देहरादून में वाद दायर कर कहा कि वह एक पैकेजिंग का stocks of MFG corrugation boxes एस.बी.आई. जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि. से एक बीमा कराया था। जो कि घटना के वक्त तक वैध थी। यानि पाॅलिसी वैधता के बीच दुर्भाग्यवश याची की फर्म में आग लग गई। जिसमें रखा स्टाक नष्ट हो गया। याची ने आग लगने की सूचना सहित अपने स्टाक-बैलेंस शीट इत्यादी समस्त दस्तावेज बीमा कम्पनी को पूरी प्रक्रिया के साथ क्लेम के लिए दिये।
इस पर आरोप है कि कम्पनी ने भुगतान देने से इंकार कर दिया। कम्पनी ने इसपर दिया कि याची के फर्म के प्रथम तल पर मात्र 600 वर्ग फीट जगह उपलब्ध थी, जो कि उक्त स्टाॅक को रखने के लिए पर्याप्त नहीं थी ऐसे में उक्त पाॅलिसी में साबुन उत्पादन का बीमा कवर था, ना कि पैकजिंग का कार्य। बीमा कम्पनी के इन तर्को को स्थाई लोक अदालत के अध्यक्ष राजीव कुमार, सदस्य मंजू सकलानी और उपेन्द्र सिंह ने सुना।
इसके बाद निष्कर्ष निकाला कि याचिका करता बीमाधारक बीमित स्थल का प्रमाणित नक्शा दाखिल किया गया जो कि क्षेत्रफल 1,046 वर्ग फीट है तथा याची संस्था का उत्पाद stocks of MFG corrugation boxes जो गत्ते का होने के कारण भार में अधिक नहीं होता और रूप से स्टाॅक को क्रमवार एक दूसरे के ऊपर सुगमता से रखा जा सकता है।
बीमा क0 ने जिस पपत्र के आधार पर याची क व्यापार को साबुन उत्पादन का प्रश्न योजित किया उसमें भी संपत्ति के विवरण में भी stocks of MFG
corrugation boxes दर्शाया है। पत्रावली में बीमा कम्पनी ने अन्य कोई भी पपत्र दाखिल नहीं किए, जिससे यह विदित होता हो कि प्रार्थिनी फर्म साबुन उत्पादन का कार्य करती है, बीमा पाॅलिसी में साबुन उत्पादन दर्शाया जाना स्वयं बीमा कम्पनी की लिपिकीय त्रुटि है। जिसके आधार पर पीड़ित का बीमा क्लेम खारिज नहीं किया जा सकता। इसके बाद बीमा कंपनी को क्लेम राशि के साथ 5 हजार रुपए चुकाने का आदेश भी दिया गया।
यह निर्णय उन लोगों के लिए आशा की किरण है जो अकसर बीमा कम्पनियों की छुपी हुई शर्तों, चालाकियों और कुतर्क दलीलों के शिकार हो जाते हैं और अपना वित्तीय नुकसान उठाने को मजबूर हो जाते हैं।