माननीयों को भी एनपीएस के दायरे में लाने की मांग…
मीडिया लाइव, देहरादून: सरकार कर्मचारियों के साथ ही पेंशनर्स पर भी भारी बजट खर्च कर रही है। उत्तराखंड में तो कर्मचारी और पेंशनर्स की संख्या करीब एक समान हो चुकी है। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर भी पेंशनर्स को लेकर हालात कुछ इसी तरह के हैं। शायद यही कारण है कि NPS (राष्ट्रीय पेंशन योजना) को प्रदेशों में लागू किया जा रहा है और अब OPS (ओल्ड पेंशन स्कीम) सरकार को बोझ लगने लगी है। जाहिर है कि कर्मचारियों को यह योजना नागवार गुजरी है। समय-समय पर इसका विरोध भी किया गया है। इतना ही नहीं अब तो कर्मचारी नेता माननीयों की पेंशन को भी टारगेट करने से नहीं चूक रहे हैं।
राजकीय कर्मचारियों की पेंशन को बोझ मानकर यदि उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद NPS (नेशनल पेंशन योजना) में लाया जा सकता है, तो माननीयों को भी वित्तीय बोझ कम करने में अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए और खुद की पेंशन खत्म कर बजट को बचाना चाहिए। NPS पर बात करते हुए कर्मचारी नेता दीपक जोशी इस बात को खुलकर कह रहे हैं। दरअसल देशभर में नई पेंशन योजना को लेकर कर्मचारियों में आक्रोश है। उधर सरकार इसे सरकारी खजाने में बड़ी बचत के रूप में देख रही है। यही नहीं एक तरफ इससे कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद कुछ हद तक आर्थिक मदद मिलने का भी दावा किया गया है।उ
त्तराखंड में आर्थिक स्थितियों पर नजर दौड़ाएं, तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि सरकार वित्तीय रूप से भारी दबाव में है। उत्तराखंड में कुल 150,750 पेंशनर्स है। इन पर सरकार 660 करोड़ रुपये महीना पेंशन में खर्च कर रही है। यानी इसका आकलन सालाना किया जाए, तो करीब 7,920 करोड़ रुपये सालाना सिर्फ पेंशन में दिए जा रहे हैं।
अब कर्मचारियों के आंकड़ों पर भी गौर करें तो प्रदेश में कुल 155,000 कर्मचारी हैं, जिन्हें वेतन के रूप में करीब 1000 करोड़ रुपये महीना दिए जा रहा है। यानी सालाना 12,000 करोड़ रुपये कर्मचारियों के वेतन पर उत्त्तराखंड में खर्च किया जा रहा है। इस तरह कर्मचारियों और पेंशनर्स के ऊपर खर्च होने वाले बजट को देखें तो हर महीने करीब 1,600 करोड़ से ज्यादा का बजट इन पर खर्च किया जा रहा है। सालाना ये आंकड़ा 20,000 करोड़ तक पहुंच रहा है। अंदाजा लगाइए उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य में 20,000 करोड़ की रकम सालाना केवल कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर खर्च हो रही है।
उत्तराखंड में इस समय काम कर रहे करीब डेढ़ लाख कर्मचारियों में करीब 50,000 कर्मचारी ऐसे हैं जो OPS (ओल्ड पेंशन स्कीम) में आ रहे हैं। उधर दूसरी तरफ करीब 93,000 कर्मचारी अब NPS (न्यू पेंशन स्कीम) के दायरे में आ रहे हैं। नई पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद एक मुश्त राशि और कुछ पेंशन का भी प्रावधान है। लेकिन इसके लिए कर्मचारियों को भी अपनी सेवाकाल के दौरान अपना कंट्रीब्यूशन देना होता है। इसमें कुल 24% में से 14% सरकार जमा करती है जबकि 10 प्रतिशत की भागीदारी कर्मचारी को करनी होती है। इसी के आधार पर भविष्य की निधि और पेंशन बनती है। अभी राज्य में करीब 1559 लोगों को फैमिली पेंशन मिल रही है। यह वह परिवार हैं, जहां परिवार के सदस्य का ड्यूटी के दौरान निधन हो गया।
माननीयों को भी एनपीएस के दायरे में लाने की मांग: कर्मचारियों पर नई पेंशन स्कीम लागू किए जाने के बाद कर्मचारियों में भी इसका रोष दिखाई देता है। दरअसल 2005 या उसके बाद नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों पर नई पेंशन स्कीम लागू हो रही है. उधर इन स्थितियों के बीच कर्मचारी भी पशोपेश में हैं। पूर्व सचिवालय संघ के अध्यक्ष और उत्तराखंड अधिकारी कर्मचारी शिक्षक महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष दीपक जोशी कहते हैं कि यदि सरकार को नई योजना इतनी पसंद है और इससे सरकार पर आर्थिक बोझ कम हो रहा है, तो माननीयों को भी वित्तीय हालातों पर कॉन्ट्रिब्यूशन करना चाहिए और माननीयों की पेंशन पर भी इसी तरह से विचार होना चाहिए. ताकि उस खर्चे को भी कम किया जा सके।
उत्तराखंड में वित्तीय वर्ष 2023-24 में राज्य सरकार की तरफ से कुल व्यय करीब 60,000 करोड़ था। इसमें करीब 20 हज़ार करोड़ तो कर्मचारी और पेंशनर्स पर ही था. इसी तरह राजस्व प्राप्ति यानी राज्य का रेवेन्यू करीब 54,000 करोड़ रुपए था. इस तरह देखा जाए तो राज्य की कुल कमाई का 34% तो अकेले कर्मचारियों पर ही खर्च हो रहा है। इतने बड़े वित्तीय बोझ को समझते हुए ही राज्य ने भी फौरन एनपीएस को तवज्जो दी है। हालांकि कर्मचारी नेताओं का भी कुछ हद तक कहना ठीक है और सरकार को बाकी खर्चों पर भी मितव्ययता दिखानी चाहिए।