जड़ों की तरफ लौटने की कोशिश में कांग्रेस
मीडिया लाइव : आज कांग्रेस की CWC की बैठक गुजरात में चल रही है. इस बैठक की जो तस्बीरें सामने आ रही हैं, उसे देख कर लगता है कांग्रेस अपनी जड़ों की तरफ लौटने की कोशिश में जुट गयी है. जिस सरल तरीके से इस बैठक को महात्मा गांधी व सरदार पटेल की जन्मभूमि पर आयोजित किया गया है उससे तो यही प्रतीत हो रहा है. कांग्रेस ने इस बैठक की जगह और समय को बड़ी रणनीति के तहत चुना है. आज मौक़ा है गांधी द्वारा शुरू की गयी दांडी मार्च की 90वीं वर्षगांठ का जिसे गुजरात की भूमि से ही शुरू किया गया था. कांग्रेस जिस शालीनता से यहाँ दिखाई दे रही है, उससे लगता है कांग्रेस ” बैक टू बेसिक” की तरफ रुख करने जा रही है. सियासी तौर पर ये उसके लिए जरूरी भी है. पिछले साढ़े चार साल में जिस तरह कांग्रेस लगातार जनाधार खोती दिख रही थी. उससे देश की इस सबसे पुरानी पार्टी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था. गौरतलब है कि अभी हाल ही में तीन बड़े राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस में जान फूंकने का काम किया है. इसलिए कांग्रेस के रणनीतिकारों ने पार्टी के इतिहास में जा कर नए सिरे से पार्टी के खोये जनाधार को वापस पाने की दिशा में कदम रख दिए हैं. लगता है पार्टी अपना पुराना रास्ता खोजने में जुट गयी है, वह अपने संगठन की ओर मुड़ती दिख रही है. जैसा देख कर लग रहा है, पार्टी अपनी उस पुरानी कार्यप्रणाली को अपनाना चाहती है , जिससे पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबू बनाया जा सके. पुराने कोंग्रेसियों की माने तो पार्टी अगर 1969 के पहले दौर में लौटे तो वह पूरे देश में दुबारा बहुत आसानी से स्थापित हो सकती है.
कहा जाता है कि कांग्रेस में एक जमाने में लोकतांत्रिक प्रक्रिया इतनी मजबूत थी कि एक साधारण पार्टी कार्यकर्ता भी पार्टी के संविधान के तहत देश के प्रधानमंत्री को भी पार्टी के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही की याद दिलाते हुए रोक-टोक सकता था. आपको बताते चलें कि बीते 50 साल में कांग्रेस उन नैतिक और पार्टी मूल्यों को लगातार कमजोर करती रही. इसका जिक्र कांग्रेस के इतिहास को जानने वाले और सेवा दल से जुड़े रहे बयोवृद्ध (80 वर्षीय) लोग हरी सिंह राणा और सुरेंद्रपाल सिंह परमार कुछ इस तरह बताते हैं कि एक बार कांग्रेस के नासिक अधिवेशन में शामिल होने जा रहे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को गेट पर रोक दिया गया. गेट पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सेवादल के कमलाकर शर्मा संभाल रहे थे, नेहरू ने उन्हें पूछते हुए कहा क्या आप मुझे नहीं जानते? कमलाकर ने विनम्रता से कहा – मैं आपको भली भांति जानता हूं. आप देश के प्रधानमंत्री हैं. लेकिन, आपने बैठक के लिए तय उचित बैज नहीं लगाया है. ऐसे में आप अंदर नहीं जा सकते. इतने में नेहरू मुस्कुराते हैं और अपनी जेब से बैज निकालकर उन्हें दिखाते हैं और उसके बाद अंदर जा पाते हैं. बाद में इस पर बैठक स्थल पर माहौल बहुत गहमा गहमी वाला भी हुआ. लेकिन नेहरू ने सेवादल की कार्यप्रणाली को पूरा सम्मान देते हुए कमलाकर को बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी. उस दौर में कांग्रेस के सच्चे सिपाहियों को पूरा सम्मान दिया जाता था. वे बताते हैं कि कांग्रेस में सेवादल को फ़ौजी अनुशासन और जज़्बे के लिए जाना जाता था. इसका संगठनात्मक ढांचा और काम करने का तौर तरीका सैन्य कार्यप्रणाली की तरह था. इतना ही नहीं बल्कि तब कांग्रेस में शामिल होने से पहले सेवादल की ट्रेनिंग ज़रूरी होती थी. दशकों से कांग्रेस के ऐसे सच्चे सिपाही आज पार्टी की दुर्दशा और जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से उदास और खिन्न हो जाते हैं. सेवादल की तर्ज पर ही गठित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगातार बढ़ती ताक़त ऐसे कोंग्रेसियों को और बेचैन कर देती है.
संघ का गठन सेवादल से करीब पौने दो साल बाद हुआ. इन दोनों संगठनों को दो ऐसे लोगो ने स्थापित किया जो कभी सहपाठी हुआ करते थे. ये दोनों शख्सियतें डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. नारायण सुब्बाराव हार्डिकर क्लास फेलो थे. ये दोनों शुरुआती दिनों में एक साथ सक्रिय रहे. लेकिन बाद में दोनों की विचारधाराएं अलग-अलग दिशाओं की तरफ रुख कर गयीं. नारायण सुब्बाराव पर गांधी का प्रभाव पड़ा तो वहीँ हेडगेवार ‘हिंदू राष्ट्र’ का सपना लेकर अलग राह पर निकल पड़े. इस बीच सेवादल ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ने लगा. एक समय में इसी संगठन में डॉ. राजेंद्र प्रसाद और सुभाषचंद्र बोस से लेकर राजगुरू जैसे कई महान क्रांतिकारी तक इसके पदाधिकारी रहे.
अब देखना ये है कि देश का ये सबसे पुराना सियासी दल अपनी खोई हुयी जमीन और कार्यकर्ताओं का विश्वास हासिल करने में सफल हो पाता है कि नहीं