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MEDIA LIVE :  ताऊ जी बच्ची राम कौंसवाल नहीं रहे: शीशपाल गुसाईं

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 प्रधान से लेकर एमएलए, एमएलसी, एमपी का चुनाव लड़ने की हैं यादें …

कोरोना काल से ताऊ जी श्री बच्ची राम कौंसवाल कुशल मंगल बाहर निकल गए थे , लेकिन मृत्यु शाश्वत है। यदि वह रहते तो हमें इतनी खुशी रहती कि ताऊ जी हैं। दो-तीन साल पहले तक वह देहरादून की सड़कों में खूब चलते फिरते थे। देहरादून के हर सामाजिक – सम्मेलनों में उनकी रुचि देखी जाती थी। 87 साल की उम्र में उनके चेहरे फीकापन नहीं रहा। वह हर सुबह जवान होते थे। मैंने उनसे 2 साल पूर्व एक कार्यक्रम में अध्यक्षता करवाई थी वह इस उम्र में किसी से लिफ्ट लेकर राजपुर रोड़ आ गए थे। और कुंवर प्रसून जी के बारे में पुरानी बातें बताने लगे, जिससे सभी लोग संतुष्ट थे। सब लोग उनके फुर्तीले पन से खुश थे। ताऊ जी मेरे पिता को राजपाल कहते थे, वह 71 साल के हैं। उनका उनसे सीधा सवांद था। कभी मिलने पर कि शीशपाल ? राजपाल कहाँ है । ताऊ जी को पिताज़ी के बारे में बताता था।

दरअसल मैं 1994 में टिहरी आया था, 1996- 97 में मेरी उनसे मुलाकात हुई थीं। नीचे कामरेड श्रीपाल जी नाई की अपनी नीचे दुकान चलाते थे, ऊपर पार्टी कार्यालय और मीटिंग का दफ्तर और उन सभी क्रांतिकारियों का अड्डा हुआ करता था। वहाँ कामरेड श्रीपाल और श्री भगवान सिंह राणा सहित तमाम लोगों से किसानों के संघर्ष की मीटिंग करते थे। और कभी कभी पुराने बाजार में कॉमरेड लोगों की लाल झंडे के दिखाई देते थे। उनके साथ गांव की भीड़ रहती थी। कभी यह घाटी लालघाटी के नाम से जानी जाती थी। ताऊ जी का आवास चने के खेत में हुआ करता था । बाद में वह नई टिहरी चले गए थे। में दो-तीन हफ्ते बाद उनसे मुलाकात करता था। मैं नवभारत टाइम्स से सहारा टीवी में आ गया था नवभारत टाइम्स में बची राम कौंसवाल जी पहले काम कर चुके थे इस कारण भी उन से निकटता थी और दूसरा यह था कि उनका कनिष्ठ पुत्र प्रसिद्ध कवि श्री प्रमोद कौंसवाल उत्तराखंड के सहारा टीवी के हेड थे। उनकी रुचि रहती थी टिहरी की खबरों को लेकर , टिहरी बांध की खबरों को लेकर, और भागीरथी , भिलंगना घाटी को लेकर। प्रमोद जी का बचपन टिहरी में बीता। फिर बाद में वह अपने मामा देश के बड़े साहित्यकार मंगलेश डबराल के साथ जनसत्ता में चले गए थे। प्रमोद बहुत काबिल पत्रकारों में एक हैं।
डबराल जी के सगे जीजा थे, बची राम कौंसवाल और कौंसवाल जी का सगा भांजा है श्री शिवप्रसाद जोशी जो हमारे सहारा टीवी के एक समय में उत्तराखंड के ब्यूरो चीफ रहे थे। जोशी जी की धर्मपत्नी श्रीमती शालिनी जोशी आज तक और बीबीसी में काम करके इन दिनों राजस्थान में प्रोफेसर हैं। और प्रमोद कौंसवाल जी के सगे ससुर जी के छोटे भाई थे उमेश डोभाल। जिन्होंने पौड़ी गढ़वाल में अमर उजाला में रहते लड़ते लड़ते शराब के विरूद्ध अपनी जान दे दी थी।

वह पूरी फैमिली पत्रकारिता में थी इसलिए भी हम सब के स्थानीय स्तर पर ताऊ जी पत्रकारिता के अभिभावक थे। मरोड़ा गांव से लेकर देहरादून तक मिलने में बातचीत करने में उत्सुकता रहती थी, उनसे।
उनके बड़े बेटे अभी 1 साल पहले टीएचडीसी में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर से रिटायरमेंट हुए हैं । ताऊ जी ने मुझे बताया की जो डोबरा चांठी पुल जो बना है उस रोड में ऊपरी साइड से हमारा मरोड़ा गांव जुड़ गया है। पहले टिहरी उत्तरकाशी रोड पर माली देवल गांव से पैदल या सड़क से आया जाता था।। मैंने जाते हुए भी देखा बड़े भाई साहब अब ज्यादातर गांव में ही रहते हैं। मरोड़ा से झील नजदीक हो गई है। इसलिए यह गांव पर्यटन के लिहाज से उत्तम हो गया है। वैज्ञानिक की पत्नी शिक्षिका है मैंने कई बार भाभी जी को प्रणाम और धन्यवाद दिया कि आपकी सेवा की वजह से ताऊ जी जिंदादिल इंसान बने हुए हैं। मरोड़ा गांव के सुंदर लाल बहुगुणा जी भी थे।

7 जनवरी 1935 को टिहरी गढ़वाल जिले की भागीरथी घाटी के थौलधार ब्लॉक के मरोड़ा गांव में जन्में कौंसवाल जी उस पीढ़ी के पहले व्यक्ति थे जो पढ़े लिखे थे उस जमाने व इंटरमीडिएट करके 24 मार्च 1953 को प्राइमरी शिक्षक बन गए थे। शिक्षक सेवा से वह शिक्षक नेता हो गए और शिक्षकों के लिए तमाम संघर्ष करने लग गए। 1960 में बच्चे राम कंसवाल सीपीएम से जुड़ गए थे और 1961 में पार्टी के पूर्ण रूप से मेंबर हो गए थे शिक्षकों के बड़े नेता होने पर जी को विधायक बनने का शौक होने लगा। 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव वह निर्दलीय रूप से टिहरी से चुनाव लड़े। प्रसिद्ध वकील सीपीएम से श्री सावन चंद रमोला को टिकट मिला। कामरेड श्री बर्फ सिंह रावत भी निर्दलीय लड़े और सीपीआई के श्री गोविंद सिंह नेगी लड़े। उपचुनाव में काफी वामपंथी नेता विधायकी का चुनाव लड़े लेकिन विधायक बने मशहूर वकील लालघाटी के नायक श्री गोविंद सिंह नेगी।

चुनाव हारने के बाद ताऊ जी ने संघर्ष नहीं छोड़ा और 1981 का विधानसभा का चुनाव टिहरी सीट से लाडा।
इस बार वह सीबीआई से चुनाव लड़े लेकिन कॉमरेड हो अन्य वामपंथी नेताओं ने चुनाव लड़ना नहीं छोड़ा। मशहूर कामरेड नेता विधा सागर नौटियाल, कामरेड श्री जगदीश ब्यास चुनाव लड़े। लेकिन 1991 में उत्तर प्रदेश में राम मंदिर को लेकर प्रचंड लहर थी जिसमें श्री लखीराम जोशी टिहरी से विधायक चुने गए इस तरह हमारे ताऊ चुनाव हार गए।

संघर्ष उनका जारी रहा उत्तर प्रदेश में एमएलसी शिक्षक की एक सीट हुआ करती थी उस सीट का नाम होता था गढ़वाल कुमाऊं रोहेलखंड, जहां से बची राम कंसवाल एमएलसी का चुनाव 1980 में लड़े। उनको शिक्षक नेत्री इंदिरा हृदयेश का समर्थन हासिल थे । लेकिन हरिद्वार के शिक्षक नेता धनीराम से 40 वोटों से बची राम कंसवाल से आगे निकलकर जीत गए। शिक्षक नेता धनीराम यह प्रचारित कराने या करने में कामयाब रहे कि वह धनीराम नेगी है नेगी के वजह से उनको उस दौर में भी वोट पड़ गया और वह इस तरह से एमएलसी जीत गए। ग्रेजुएट स्वीट से नित्यानंद स्वामी विजय होते थे उत्तर प्रदेश में तब छह छह सीटें एमएलसी की हुआ करती थी। इस तरह हमारे ताऊ जी जीतने में बाल-बाल बच गए लेकिन उन्होंने संघर्ष और जनसंपर्क नहीं छोड़ा तमाम किताबों का उन्हें बहुत शौक था और अखबार तो वह चाट जाते थे कोरोनाकाल से पहले मैं उनके घर में गया था, तो उन्होंने मुझे अपना व्हाट्सएप नंबर नया दिया मैं खुशी से झूम उठा वह व्हाट्सएप चलाने लग गए थे 85 – 86 वर्ष का व्यक्ति व्हाट्सएप पर कुछ रिप्लाई करें, इससे बड़ी बात भारत में क्या हो सकती है वह टेक्नोलॉजी के साथ भी चल रहे थे। जो समय की मम्मी मांग है वहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और टिहरी गढ़वाल जिला पंचायत अध्यक्ष रहे भूदेव लखेड़ा की भी बहुत करीबी थे ताऊ जी। लखेडा जी को वह बड़ा भाई बोलते थे और टिहरी गढ़वाल में पंचायतों में उभरते हुए नेता जोत सिंह बिष्ट को बड़ा जानकार मानते थे। जब जोत सिंह पहली बार एमएलए बन सकते हैं। उस खुशी के लिए कौंसवाल जी मौजूद नहीं …. होंगे।

2009 का लोकसभा चुनाव था जिसमें बची राम कौंसवाल जी ने टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट से सीपीएम के उम्मीदवार हुए। उनके साथ वामपंथी विचारधारा के लोगों ने गांव- गांव जाकर लाल झंडों के साथ प्रचार किया। लेकिन कौंसवाल जी पराजित हो गए। उनका संघर्ष जारी रहा। वह 2009 से लेकर कई आंदोलनों में राज्य में शरीक रहे उन्होंने कई बार जल जंगल जमीन की भी बात की लेकिन इस उम्र में भी व संघर्ष के लिए जवान दिखते थे आज उनका जाना मुझे दुखदाई कर दिया। उन्होंने जीवन में गरीब लोगों की आवाज उठाई उनके एजेंडे में दलित शोषित वर्गों के उत्थान के लिए बातें रहती थी।