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देहरादून नगर निगम मेयर चुनाव: जुगराण इसलिए हैं इस रेस में शामिल…

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मीडिया लाइव, पॉलिटिकल डेस्क,देहरादून : उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव के लिए अधिसूचना जारी हो चुकी है। प्रदेश के सबसे बड़े नगर निगम देहरादून के लिए वार्ड सभासद से लेकर मेयर तक के प्रत्याशी बनने की बड़ी होड़ बीजेपी और और कांग्रेस में लगी हुई है। प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के मुकाबले यह संख्या सत्तारूढ़ बीजेपी में ज्यादा देखने को मिल रही है। इसके लिए पूर्व मेयर से लेकर कई पूर्व विधायकों और विधायकी का चुनाव लड़ चुके नेता जोर आजमाइश में लगे हैं। ऐसे में एक नाम इन दिनों तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ ही खूब चर्चाओं में हैं, वह इस बार ये मौक़ा चूकना नहीं चाहते।

उन्होंने कई बार पार्टी से विधायकी के टिकट के लिए भी कोशिशें की लेकिन मौक़ा न मिलने के बाद भी पार्टी से कोई खास नाराजगी नहीं दिखाई। छात्र राजनीति से लेकर पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, पुलिस की प्रताड़ना झेली। राज्य के हर मुमकिन स्थानीय मुद्दों के साथ ही पार्टी का पक्ष भी हर समय मजबूती से सामने रखा। ऐसे में एक बार फिर उन्होंने अपनी पार्टी से उम्मीद लगाई है कि उन्हें देहरादून मेयर पद के लिए पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बनाया जाए।

जी हाँ हम यहाँ बात कर रहे हर वक्त किसी न किसी सामाजिक और स्थानीय मुद्दों के साथ ही राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बात बेबाकी से रखने वाले जाने माने चेहरे रविंद्र जुगरान की। जुगरान का प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से काफी पुराना नाता रहा है। ऐसे में उन्होंने पार्टी से उत्तराखण्ड के आगामी नगर निकाय चुनाव में देहरादून शहर के महापौर (मेयर) पद के प्रत्याशी बनने के लिए खुद के नाम पर विचार करने का आग्रह किया है।

राज्य आंदोलनकारी रहे जुगरान ने विधिवत रूप से साल 1997 में पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मनोहर कान्त ध्यानी के सानिध्य में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। तब से लेकर अब तक वे भाजपा युवा मोर्चा व भारतीय जनता पार्टी में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते रहे हैं।

जुगरान पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी की सरकार में राज्य युवा कल्याण परिषद के उपाध्यक्ष रहे। इसके अलावा पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक सरकार में वे उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलनकारी सम्मान परिषद के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।

यूं तो वैचारिक तौर पर इससे पहले 1990 के दशक की शुरुआत में यानी 1991 में राम मंदिर आन्दोलन के दिनों में ही जुगरान भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए थे। साल 1991 में डीएवी कॉलेज छात्र संघ चुनाव में महामंत्री पद के लिए पार्टी ने ही उन्हें मैदान में उतारा। वह चुनाव जीतने में वे सफल रहे और छात्र संघ महामंत्री का पद संभाला।

इसके बाद साल 1993 में उन्होंने उत्तराखंड के सबसे बड़ी छात्र संख्या वाले इसी डीएवी कॉलेज के छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और उन्हें बड़ी सफलता मिली और वे छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए।

ऐसे में रविंद्र जुगरान के समर्थकों को भी लगता है कि उनका दावा बेहद मजबूत बनता है क्योंकि वे बीते तीन दशक से भी ज्यादा वर्षों से लगातार राजनितिक व सामाजिक गतिविधियों में पार्टी कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं।

रविंद्र जुगरान का कहना है कि उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद विपक्ष में रहते हुये भारतीय जनता पार्टी, उत्तराखण्ड के उन कार्यकर्ताओं में वे शामिल हैं जिन्होंने विपक्ष में रहते हुये सबसे मुखर और संघर्षशील रह कर पार्टी के हित में काम किया। यही वजह रही कि पार्टी ने पूर्व में उन्हें भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश प्रवक्ता का दायित्व सौंपा।

रविंद्र जुगरान का उत्तराखण्ड के विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रहा है वर्तमान में भी वे कई सामाजिक संगठनों के संरक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं। जिससे लगातार उनकी आमजन के बीच मौजूदगी बनी रहती है।

संघर्ष और आंदोलनों से जुगरान का ये है पुराना नाता : वर्ष 1989 – 90 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू किया तब उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में अव्यवहारिक मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का उन्होंने जहरों नौजवानो के अगुवाई के साथ पुरजोर विरोध किया। उसे दौरान पीक पर चल रहे छात्र आन्दोलन नेतृत्व करते हुए वे लगभग 8-9 दिन तक देहरादून जिला कारागार में बंद रहे।

वहीं साल 1994 में उत्तर प्रदेश कि तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के यूपी में 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण लागू करने के फैसले से पर्वतीय क्षेत्रों में इस अव्यवहारिक 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के विरोध में प्रदेश के छात्रों, नौजवानों को एकजुट करने का काम उन्होंने किया और आन्दोलन का नेतृत्व करने का उन्हने मौक़ा मिला। बाद में सितम्बर 1994 में यही आन्दोलन पृथक उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आंदोलन के रूप में बदल गया और अलग राज्य की मांग को लेकर जो आन्दोलन भीषण रूप में बदल गया उसमें भी उन्हें कई जगहों पर युवाओं का नेतृत्व करने का मुका मिला।

इस आन्दोलन के दौरान वे कई बार जेल गए, जिसमें प्रमुख रूप से मैनपुरी जेल में लगभग 15 दिन व बरेली सेंट्रल जेल में एक माह तक और देहरादून जेल में भी लगभग 17 दिन तक उन्हें कैद करके रखा गया। उनका दावा है कि मैंने अपने 34 वर्षों के राजनैतिक जीवन में लगभग एक दर्जन बार जेल यात्रायें की हैं।

उसी दौरान और उसके बाद जब 9 नवम्बर 2000 तक अलग राज्य बना तब तक इस मांग को लेकर पूर्व वर्ती केन्द्रीय मंत्रियों से वार्ता के लिए उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति का नेतृत्व किया। वर्ष 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री आवास पर भी वार्ता का नेतृत्व उन्होंने किया।

जुगराना का कहना है कि इतना ही नहीं न्याय, जन सरोकारों के लिये प्रतिबद्ध सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्त्ता के रूप में अब तक वे उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय व सर्वोच्च न्यायलय में लगभग 25 जनहित याचिकायें दायर कर चुके हैं। ये जनहित याचिकायें उत्तराखण्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर रही हैं, जिनमें अधिकांश मामलों में निर्णय जन पक्ष में आए हैं।

रविंद्र जुगरान का मौलिक परिचय: रविंद्र जुगरान मसूरी में जन्में और देहरादून में लगभग 34 वर्षों से मैं राजनैतिक , सामाजिक क्षेत्र में सक्रीय हैं। मूल रूप से उनका पैतृक गाँव जनपद टिहरी के विकासखण्ड चम्बा, पट्टी उदयकोट, पोओ नैल, ग्राम जुगड़ गाँव है। बीते तीन दशक से अधिक समय से वे राजनैतिक, सामाजिक रूप से देहरादून में सक्रीय हैं। उनका सियासी और सामाजिक सफर छात्र राजनीति से शुरू हुआ और आज 34 वर्ष बाद भी युवाओं और उत्तराखण्ड से सम्बंधित तमाम विषयों पर पूरी बेबाकी से संघर्षरत के साथ दिखाई देते हैं।