वाराणसी : निषाद , ब्राह्मण , बनिया और मुस्लिम बड़ी तादात में हैं ये मतदाता
मीडिया लाइव : वाराणसी केवल गंगा के नाम से नहीं जाना जाता है यहाँ पर वरुणा और असी नदियों का भी किनारा है. इस तरह से देखा जाए तो इस पूरे क्षेत्र को इन पवित्र नदियों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए, इन नदियों के अस्तित्व के चलते यहाँ बहुत बड़ी आबादी भी सीधे तौर पर इनसे अपना अस्तित्व जोड़ती है. इन महान नदियों के किनारे बसे शहरी भाग में फ़ैली गलियों के साथ घाटों का भी महत्व है.
गंगा के किनारे इन यहाँ करीब 84 घाटों के अलावा दर्जनों घाट और भी हैं.इन घाटों और किनारों पर हज़ारों की संख्या में निषाद तबका बसा हुआ है. पिछले लोकसभा चुनाव में इस तबके के मतदाताओं ने अति उत्साह और उम्मीद के चलते तत्कालीन सांसद प्रत्याशी नरेंद्र मोदी से जुड़ने में खुद को गौरान्वित महसूस किया था. उन्हें उम्मीद थी कि अब तो उनके दिन बहुरेंगे लेकिन ऐसा कुछ इन पांच सैलून में उन्हें होता नहीं दिखाई दिया. इस बिरादरी का मनना है कि बीते पांच साल में उनके सामने सबसे ज्यादा संकट रोजी रोटी को लेकर ही खड़ा है. जिसके लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा. क्योंकि मोदी सरकार ने कभी गंगा में क्रूज़ चला कर उनकी जीविका को जो चोट की, उस पर आंदोलन भी हुआ, लेकिन सरकार ने इनकी एक न सुनी. इस चुनाव में यह भी इन मतदाताओं की नाराजगी बन कर सामने आ सकता है. निषादों की तरह यादव बिरादरी का भी 1 लाख 50 हज़ार वोट है, ये लोग चुनाव हमेशा से बीजेपी को ही वोट देती रही है. लेकिन इस बार वो अखिलेश यादव के साथ जाने की बात करता दिख रहा है. वहीं दलित 80 हज़ार और मुस्लिम लगभग तीन लाख के आसपास हैं. 2014 के चुनाव में सपा-बसपा अलग-अलग लड़ी थी और मुस्लिम केजरीवाल की तरफ चला गया था जिससे वो 2 लाख 9 हज़ार वोट पाए थे. अब अगर ये वोट एक साथ आते हैं, तो एक ऐसी चुनौती बन सकती है जिसे किसी के लिए भी नज़रंदाज़ करना बेहद नुकसान पहुंचा सकता है. साफ़ है कि पीएम मोदी के लिये ये चुनाव जितना आसान दिख रहा है उतना आसान है नहीं और इस बात को पीएम मोदी बखूबी समझते हैं इसीलिए वो कार्यकर्ता सम्मलेन में अपने कार्यकर्ताओं को ज़्यादा से ज़्यादा वोट निकलवाने की अपील कर गए हैं.