ऐसे में आखिर कैसे बचेगा भू-जल
मीडिया लाइव, अ ट्रू आई ओपनर : बोरवेल से हो रहे अंधाधूँध भूजल दोहन पर फिक्र जताई जा रहे है। इस पर देश भर में न जाने कितने सेमीनार और बैठकें आयोजित की जा रही हैं, जिनमें भूजल दोहन पर रोक लगाने की मांग की जा रही है।
माना जा रहा है कि भूजल के अनधिकृत दोहन से भविष्य में पानी की मात्रा कम होने का खतरा है। वहीँ लोगों को भी बोतल बंद पानी पिलाया जा रहा है, इसकी गुणवत्ता पर किसी का ध्यान नहीं है. बिना गुणवत्ता की जांच किए पानी की आपूर्ति की जा रही है, इससे सामान्य जनमानस के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। घटते जल स्तर और जमीन के अंदर की बिगड़ती पर्यावरणीय संरचना की ओर ध्यान नहीं दिया रहा है। शहर से लेकर मैदानी भागों के गांवों में बिना अनुमति समरसेबल और बोरवेल चलाए जा रहे हैं। पानी माफिया इनका व्यावसायिक उपयोग कर रहे हैं। बोरवेल संचालकों के पास इनके संचालन की अनुमति तक नहीं है। इतना ही नहीं कई जगहों पर आरक्षित वन क्षेत्रों में भी वाटर पंप लगाए जा रहे हैं. पानी राष्ट्रीय संपदा है, भविष्य की जरूरतों को देखते हुए इसका संरक्षण बेहद जरूरी है।
पानी के बेतहाशा दोहन पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में शिकायत दर्ज कराई जाने के बाद भी इस पर पूरी तरह रोक नहीं लग पा रही है.
आपको बतादें कि अभी भूमिगत जल दोहन के बारे में देश के कई राज्यों के अलावा उत्तराखंड में भी कोइ जल नीति अमल में नहीं लाई गई है। जब तक शासन स्तर पर इस दिशा में तेजी नहीं दिखायी देगी और । नीति का निर्धारण नहीं होगा तब तक उचित कार्रवाई होना मुमकिन नहीं है।