कांग्रेस ने कब्जाया बीजेपी का नारा
मीडिया लाइव: राजनीति में नारों का बड़ा महत्व है, जनता से अपील करने, एक वाक्य में संदेश पहुंचाने, कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए नारों का इस्तेमाल होता रहा है। बिना नारों के चुनावी माहौल बनने की बात तक नहीं सोची जा सकती। उत्तराखंड की फिजाएं भी ऐसे ही चुनावी नारों से गूंज रही हैं। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि पिछले दस सालों से भाजपा जिस नारे के साथ हर चुनाव में जनता के साथ जा रही थी, उसे अब कांग्रेस ने हथिया लिया है। वो नारा है खंडूडी है जरूरी पूर्व सीएम व भाजपा के दिग्गज नेता बीसी खंडूडी के पुत्र मनीष खंडूडी के कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही ये नारा भी कांग्रेस का हो गया है। कांग्रेस ने गढ़वाल लोकसभा सीट से मनीष खंडूडी को उतारने के साथ ही खंडूडी है जरूरी का नारा लगाना शुरू कर दिया है। भले ही भाजपा और कांग्रेस में कई बड़े नेता दल बदल कर इधर उधर हुए हैं, लेकिन किसी के साथ पार्टी का खास नारा या वन लाइनर संदेश नहीं गया। खास बात ये है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में यह पार्टी का प्रमुख नारा या पंचलाइन थी। लेकिन तब बीसी खंडूडी खुद कोटद्वार विधानसभा से चुनाव हार गए थे। अब समय ही बताएगा कि गढ़वाल लोकसभा की जनता इस नारे को कितना पंसद करती है। इसके अलावा कांग्रेस के पास स्थानीय मुद्दों पर कोई दूसरा नारा नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के मैं भी चौकीदार के जवाब में उसने चौकीदार चोर है का नारा गढ़ा है। दूसरी ओर भाजपा की बात करें तो भाजपा के पास स्थानीय स्तर पर कोई खास नारा नहीं है। उसके पास राष्ट्रवाद के भाव में लिपटे हुए नारों की फेहरिस्त है। जिनमें कई नारे कांग्रेस के नारों के मुकाबले काफी आक्रामक भी हैं। क्षेत्रीय दलों की बात करें तो उत्तराखण्ड क्रांति दल ने राज्य की पांचों सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। दल के पास स्थानीय मुद्दों पर आधारित नारे तो हैं लेकिन वो पुराने ही हैं। नए नारे गढ़ने में उसने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार शंकर सिंह भाटिया के मुताबिक लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय दलों का फोकस राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा रहता है। चुनाव प्रचार में एकरूपता के लिए भी क्षेत्रीय मुद्दों पर नारों से परहेज किया जाता है।