भगत सिंह के अंदाज से अंग्रेज हुकूमत सहम गई थी

मीडिया लाइव : जब अंग्रेज हुकूमत के नुमाइदों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में नृशंस हत्याकाण्ड कराया था,तब भगत सिंह करीब 12 साल के थे। इसकी सूचना मिलते ही बालक भगत सिंह अपने स्कूल से १२ मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गये। इस उम्र में भगत सिंह चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ? शुरुआत में वे महात्मा गांधी के अहिंसात्मक संघर्ष से प्रभावित हुए। लेकिन गान्धी जी के असहयोग आन्दोलन को रद्द कर देने के कारण उनमें थोड़ा रोष उत्पन्न हुआ, पर पूरे राष्ट्र की तरह वो भी महात्मा गांधी का सम्मान करते थे। इसके बाद उन्होंने गांधी जी के अहिंसात्मक आन्दोलन को छोड़ क्रांति की राह चुनी। उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे। काकोरी काण्ड में ४ क्रान्तिकारियों को फाँसी व १६ अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि उन्होंने १९२८ में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में विलय कर दिया और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन
सजा ए मौत
साइमन कमीशन के विरोध के दौरान प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करवाने वाले एएसपी सांडर्स की हत्या, असेंबली में बम धमाका और अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को अंग्रेज हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया था। 26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई।] फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- “ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।” फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो।”