पेड़ पर ठहरी साँसे
medialive
# उत्तराखंड सरकार, # चंदन सिंह नेगी, # पर्यावरण, # पर्यावरण विद, #कविता संग्रह, #पेड़ पर ठहरी साँसे, साहित्यकार जितेंद्र ठाकुर
मीडिया लाइव: सर्दियों के बाद, जैसे माँ, उधेड़ने लगती है पुराने स्वेटर, बढ़ते बच्चों के हिसाब से दुबारा बुनने के लिए। पेड़ भी उतारने लगते हैं।धीरे-धीरे पुराने पत्ते सर्दियों के बाद। मातृत्व का विस्तार कितना अनिवार्य है जीवन के लिए।।
‘सभ्यता’ शीर्षक से प्रकाशित इस कविता की पंक्तियों में अभिव्यक्त को शिद्दत के साथ महसूस करने वाले शब्दों के कुशल चितेरे कवि चन्दन सिंह नेगी का नाम परिचय का मोहताज नहीं है। पत्रकार, जनकवि, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद आदि बहुआयामी प्रतिभा के धनी नेगी जी ने प्रकृति प्रेम की उद्दात भावनाओं को अपनी कविता ‘यंत्रणा’ में कुछ इसी अन्दाज में उकेरा है;
बौर आने के बाद अगर फल नहीं देता आम का पेड़, तो गर्भपात सी यातना भोगता है, हम उस पीड़ा को, छूने की कोशिश नहीं करते, एक अदद जूता, टांग देते हैं पेड़ पर अरे! आम की छांव में बैठकर, उदास टहनियों से कभी बात तो की होती। ऐसे समय में कभी सांत्वना तो दी होती।
पलायन हमारे लिये विकट समस्या बन गयी है। आजीविका के लिये पलायन पहले भी होता था परन्तु गांव आबाद रहते थे। आज गांव के गांव खाली हो रहे हैं। खेत खलिहान बंजर हो गये हैं। पलायन की मार से हमारे देवता भी अछूते नहीं रहे। कवि चन्दन नेगी ने ‘देवता प्रतीक्षारत हैं’ कविता में इस व्यथा को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है;
गावं के देवालय में दिया जलाने वाले उगते सूरज के साथ, महानगर की मेट्रो ट्रेन मे,सफर कर रहे हैं। गांव, छानी, घर, गाड़, गदेरे, हरा-भरा जंगल और समूचा पहाड़ रहता है। उनके साथ गांव में देवताओं की मूर्तियों पर
मकड़ियों ने सुरक्षा घेरा बना लिया है। सावधानी से घर की चौखट तक। कदमताल करते है बंदर और सूअर और कभी-कभी बाघ भी। निरंकुश हो गए हैं, सीढ़ीदार खेत, हल की निगरानी के अभाव में देवता प्रतीक्षारत हैं , कब उसके अपने खोलेंगे द्वार, जलाएंगे धूपबत्ती, आशीर्वाद लेने को। झोली फैलाएंगे आशीर्वाद का पहाड़ है, आजकल, देवताओं के पास।
मेरे पेशे से हटकर है टाईपिगं विधा। परन्तु इन कविताओं को जब मैंने पढ़ा तो मैंने पूरे मनोयोग से इन्हें टाईप किया, प्रुफ लगाया। केवल इसलिये कि क्षण भर के लिये ही सही, मैं भी उन अनुभूतियों से होकर गुजरना चाहता था जिससे होकर इन कविताओं का सृजक गुजरा है। यह जानते हुये भी कि आसान नहीं है इस प्रकार की रचनाओं का सृजन। एक-एक कविता एक-एक पेड़ है, एक-एक वाटिका है और यह पूरा संग्रह एक हरा-भरा जंगल है, एक पूरी कायनात है। और जंगल होना शहर होने से भी कहीं अधिक कठिन है।
पृथ्वी पेड़ लगाने से बचाई जा सकती है और पेड़ लगाने के पीछे इस तरह की कवितायें प्रेरक का काम करती है। ये कवितायें अधिकाधिक लोगों की प्रेरणास्रोत बन सके, यही कामना है।
समय साक्ष्य, 15 फालतू लाईन, देहरादून-248001 से प्रकाशित नेगी जी का यह कविता संग्रह ‘पेड़ पर ठहरी सांसें’ संभवतः हिन्दी साहित्य में एकमात्र संग्रह है, जिसकी पूरी पैंसठ कवितायें वन एवं पर्यावरण पर केन्द्रित है। नेगी जी की यह पुस्तक निस्सन्देह उन्हें एक नई पहचान दिलायेगी।
मंच पर(बायें से दायें)-कवि व वरिष्ठ साहित्यकार: अरुण असफल, पूर्व विधायक: कुंवर सिंह नेगी, मूर्धन्य साहित्यकार: जितेन ठाकुर, मैती आन्दोलन के प्रणेता: कल्याण सिंह रावत, वरिष्ठ साहित्यकार: डॉ. योगम्बर सिंह बर्तवाल तथा एकदम दायें स्वयं कवि चन्दन सिंह नेगी।
बौर आने के बाद अगर फल नहीं देता आम का पेड़, तो गर्भपात सी यातना भोगता है, हम उस पीड़ा को, छूने की कोशिश नहीं करते, एक अदद जूता, टांग देते हैं पेड़ पर अरे! आम की छांव में बैठकर, उदास टहनियों से कभी बात तो की होती। ऐसे समय में कभी सांत्वना तो दी होती।
पलायन हमारे लिये विकट समस्या बन गयी है। आजीविका के लिये पलायन पहले भी होता था परन्तु गांव आबाद रहते थे। आज गांव के गांव खाली हो रहे हैं। खेत खलिहान बंजर हो गये हैं। पलायन की मार से हमारे देवता भी अछूते नहीं रहे। कवि चन्दन नेगी ने ‘देवता प्रतीक्षारत हैं’ कविता में इस व्यथा को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है;
गावं के देवालय में दिया जलाने वाले उगते सूरज के साथ, महानगर की मेट्रो ट्रेन मे,सफर कर रहे हैं। गांव, छानी, घर, गाड़, गदेरे, हरा-भरा जंगल और समूचा पहाड़ रहता है। उनके साथ गांव में देवताओं की मूर्तियों पर
मकड़ियों ने सुरक्षा घेरा बना लिया है। सावधानी से घर की चौखट तक। कदमताल करते है बंदर और सूअर और कभी-कभी बाघ भी। निरंकुश हो गए हैं, सीढ़ीदार खेत, हल की निगरानी के अभाव में देवता प्रतीक्षारत हैं , कब उसके अपने खोलेंगे द्वार, जलाएंगे धूपबत्ती, आशीर्वाद लेने को। झोली फैलाएंगे आशीर्वाद का पहाड़ है, आजकल, देवताओं के पास।
मेरे पेशे से हटकर है टाईपिगं विधा। परन्तु इन कविताओं को जब मैंने पढ़ा तो मैंने पूरे मनोयोग से इन्हें टाईप किया, प्रुफ लगाया। केवल इसलिये कि क्षण भर के लिये ही सही, मैं भी उन अनुभूतियों से होकर गुजरना चाहता था जिससे होकर इन कविताओं का सृजक गुजरा है। यह जानते हुये भी कि आसान नहीं है इस प्रकार की रचनाओं का सृजन। एक-एक कविता एक-एक पेड़ है, एक-एक वाटिका है और यह पूरा संग्रह एक हरा-भरा जंगल है, एक पूरी कायनात है। और जंगल होना शहर होने से भी कहीं अधिक कठिन है।
पृथ्वी पेड़ लगाने से बचाई जा सकती है और पेड़ लगाने के पीछे इस तरह की कवितायें प्रेरक का काम करती है। ये कवितायें अधिकाधिक लोगों की प्रेरणास्रोत बन सके, यही कामना है।
समय साक्ष्य, 15 फालतू लाईन, देहरादून-248001 से प्रकाशित नेगी जी का यह कविता संग्रह ‘पेड़ पर ठहरी सांसें’ संभवतः हिन्दी साहित्य में एकमात्र संग्रह है, जिसकी पूरी पैंसठ कवितायें वन एवं पर्यावरण पर केन्द्रित है। नेगी जी की यह पुस्तक निस्सन्देह उन्हें एक नई पहचान दिलायेगी।
मंच पर(बायें से दायें)-कवि व वरिष्ठ साहित्यकार: अरुण असफल, पूर्व विधायक: कुंवर सिंह नेगी, मूर्धन्य साहित्यकार: जितेन ठाकुर, मैती आन्दोलन के प्रणेता: कल्याण सिंह रावत, वरिष्ठ साहित्यकार: डॉ. योगम्बर सिंह बर्तवाल तथा एकदम दायें स्वयं कवि चन्दन सिंह नेगी।
समीक्षक: शुवीर रावत .