जनता का विश्वास कब जीत पाएगी यूकेडी
मीडिया लाइव ब्यूरो :

उत्तराखंड क्रांति दल को लेकर सूबे के लोग अभी तक यह नहीं समझ पाए कि आखिर यह दल है क्या और क्यों इस पर भरोशा जताए. ऐसा नहीं है कि प्रदेश की जनता स्थानीय राजनीतिक विचार धारा को नापसंद करती हो. लेकिन इस पर्वतीय सूबे की राजनीति को अभी तक स्थानीय तौर पर मजबूत नेतृत्व नहीं मिल पाया है, जो जनता में विश्वास और कोई नयी उम्मीद जगा सके.
उक्रांद के कई सालों से अलग-अलग धडों में बंटे होने के कारण यह लोगों को खुद के साथ जोड़ पाने में नाकाम रहा है. जो भी नेता दल के प्रत्याशी के रूप में जनता के सामने गया जीत के बाद वह उन्ही राजनीतिक दलों के साथ खड़ा हो गया जिनकी आलोचना कर वह विधानसभा तक पहुंचा. हर बार मतदाताओं को निराशा ही हाथ लगी. यही कारण है कि पहाड़ और उसके विकास को लेकर यहाँ कठिन हालात ही रहे है. कहने को तो यूकेडी पहली क्षेत्रीय पार्टी है. इसे राज्य के लोगों ने समय समय पर अलग स्थानों से विधान सभा तक जरूर भेजा पर यह खुद को साबित नहीं कर पायी. यूकेडी के एक धड़े के अध्यक्ष और पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी का कहना है कि राज्य निर्वाचन आयोग ने उक्रांद के रूप में उन्हें मान लिया है. वहीँ दूसरे गुट के अध्यक्ष त्रिवेंद्र पंवार इस बात को लगातार चुनौती दे रहे हैं. दोनों ही धड़े बिना किसी विरोध के उत्तराखाद क्रान्ति दल नाम का बखूबी स्तेमाल कर रहे हैं. इसका मतलब साफ़ है कि पार्टी के नाम पर किसी भी गुट को एकाधिकार हासिल नहीं है. वरना नाम के उपयोग को लेकर साड़ी रार कब ख़त्म हो गयी होती. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है.
राज्य बनने के बाद लग रहा था कि यूकेडी को पहाड़ी जनता का अपार समर्थन मिल सकता है. लेकिन यह पार्टी लोगों को यह विश्वास नहीं दिला पायी कि उसने और उसके नेताओं ने राज्य आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी. जब कि कांग्रेस और बीजेपी को यहाँ के मतदातों ने खुद के ज्यादा करीब पाया. यही कारण है की ये दोनों राष्ट्रीय पार्टियाँ बारी बरी सूबे की सत्ता में कबिज होती रही. फिलहाल उत्तराखंड के लोगों के पास तीसरा कोई मजबूत बिकल्प नहीं है.पहले विधानसभा चुनाव में उक्रादं को 4 सीटों पर जीत भी हासिल हुयी लेकिन. वह जीत चुनाव दर चुनाव कम होती चली गयी. आज यूकेडी कोटे से एक विधायक विधानसभा में है. लेकिन पूर्व विधायकों की तरह ही यूकेडी विधायक सत्ता में भागीदारी के लिए बीजेपी कांग्रेस के साथ खड़े हैं. लिहाजा उन्हें मंत्री पद का सुख मिल रहा है.आज भी उक्रादं को लेकर जनता के बीच कोई गंभीर राय सुमारी करते हुए नहीं सुना जाता. यहाँ लोग सीधे कांग्रेस और बीजेपी को लेकर राजनीतिक चर्चा करते हैं.भला ऐसे में उक्रांद के भविष्य को लेकर क्या सोचा जा सकता है. दल कब तक यूहीं बनता रहेगा इस पर भी संशय के बादल लगे हुए हैं. खुद को असली और दूसरे को नकली साबित करने में इन गुटों को लड़ाई जारी है. फिर स्थानीय मुद्दों को लेकर भला किसे राजनीतिक करने के पड़ी है.