पंचायत चुनाव पर क्या कहा पूर्व सीएम हरीश रावत ने
मीडिया लाइव, देहरादून: जिला पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो गया। कानून कहता है कि एक जनप्रतिनिधि से दूसरा जनप्रतिनिधि ही चार्ज लेगा। मगर सरकार ने जिला पंचायतों और क्षेत्र पंचायतों में भी प्रशासक बैठा दिये हैं। अब इन्होंने क्षेत्र पंचायतों में ब्लॉक प्रमुखों को और जिला पंचायतों में जिला पंचायत अध्यक्ष को ही प्रशासक बनाया है, अच्छी बात है।
पहला कदम तो यह होना चाहिए था कि शीघ्र से शीघ्र पंचायतों के चुनाव करवाए जाते। लेकिन आपने इन दो पदों को मान्यता दी। मगर दूसरी तरफ जो जिला योजना का निस्तारण करती थी, जो जिला योजना को क्रियान्वित करने वाली समिति थी जैसे प्लानिंग कमेटी, वह भी चुनी हुई समिति होती है और उसमें क्षेत्र पंचायतें प्रतिनिधि चुनती हैं आपने उसको डिफंक्ड कर दिया है, क्योंकि नई बन नहीं पाई और पुरानी का आपने कार्यकाल बढ़ाया नहीं।
दूसरी तरफ जिला प्लान के लिए जो पैसा आ रहा है जिलों में उस पैसे का निस्तारण कौन करेगा? वह एक बड़ी धनराशि है। जो निर्वाचित बॉडी उसके लिए थी उसको आप फंक्शनल नहीं मान रहे हैं तो इसका अर्थ है कि इस पैसे का जो जिला प्लान के लिए आएगा, सारा निस्तारण करने का काम केवल ब्यूरोक्रेसी करेगी, जिलाधिकारी करेंगे, हो सकता है प्रशासक का भी कुछ श्रेय हो, लेकिन प्रशासक तो प्रशासक ही होगा।
क्योंकि वह शासन द्वारा नियुक्त होगा। शासन के मंत्री जो चाहेंगे उस तरीके से धन का वितरण करेंगे और उससे जो पंचायतों की डिसेंट्रलाइज्ड वॉइस थी, विकास की विकेंद्रीकृत आवाज थी, वह नहीं आ पाएगी और जिला योजना का विकेंद्रीकृत विकास का जो लक्ष्य है वह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
अब सरकार के सामने दो रास्ते हैं। पहला रास्ता तो यह है कि वह डीपीसी को फंक्शनल माने, जिस तरीके से उन्होंने ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष को प्रशासक बनाया है, उसी तरीके से डीपीसी को भी फंक्शनल मान लें। जब तक नई डीपीसी नियुक्त नहीं हो जाती या फिर जिला योजना के पैसे का निस्तारण तब तक डिफर किया जाए, जब तक पंचायतों के चुनने के बाद डीपीसी के सदस्य चुनकर के नहीं आते हैं। यदि आप ऐसा नहीं कर रहे हैं तो यह माना जाएगा कि जो धन जिला योजना के लिए आ रहा है उसकी आप बंदरबांट करना चाहते हैं।