विव रिचर्ड्स ना सही, हमने हकीमू को खेलते देखा है !
पुष्कर सिंह रावत।
बात 1995 की है सर्दियों की है। हर साल की तरह नौगांव के मुलाना मैदान में क्रिकेट टूर्नामेंट में चल रहा था। हम कुछ दोस्त बड़कोट की ए टीम का सपोर्ट करने पहुंचे थे। दूसरी ओर की टीम देहरादून और विकासनगर के नामी खिलाडि़यों से सजी थी। पहले बैटिंग करते हुए उस टीम ने अच्छा खासा स्कोर भी खड़ा कर दिया। बड़कोट की शुरुआत खराब रही। दो विकेट जल्दी गिरने के बाद एक अच्छी कद काठी का सांवला सा शख्स पैडअप हुआ और विकेट की ओर चल दिया। स्टांस लेने तक उसमें सब कुछ मामूली लग रहा था। लेकिन पहली गेंद पर दननाता हुआ स्क्वायर कट पड़ गया। इससे पहले कि कोई फील्डर अपनी जगह से हिलता, टीम के खाते में चार रन आ चुके थे। फिर शानदार पुल शॉट छह रन के लिए। ऐसे कई शॉट्स उसके बल्ले से निकले और जल्द ही दूसरी टीम ने घुटने टेक दिए। यमुना के बाएं तट पर कुदरती तौर पर बना ये मैदान उस दिन हकीमुद्दीन खान की आतिशी बल्लेबाजी का गवाह बना।
इससे पहले हकीमुद्दीन खान का नाम हमने बहुत सुना था, लेकिन उस दिन पहली बार बल्लेबाजी देखी। दरअसल एक समय उत्तरकाशी ही नहीं पूरे गढ़वाल में हकीमुद़दीन की बललेबाजी का जलवा था। वो जीती जागती किंवदंती बन चुका था। उनके बारे में गढ़वाल के हर क्रिकेट मैदान में किस्से कहानियां सुनी और सुनाई जाती। जिस दिन हकीमुद्दीन की टीम का मैच होता उस दिन लोग काम धंधे छोड़कर मैदान पर पहुंच जाते। पहाड़ी अंदाज में उन्हें हकीमू या हकीमू भाई आज भी पुकारा जाता है। साधनों की कमी ने इस खिलाड़ी को वो मुकाम हासिल नहीं करने दिया, जिसका वो हकदार था। क्रिकेट के नजरिए से पीछे मुड़कर देखें तो हकीमुद्दीन की बल्लेबाजी भी विव रिचर्ड्स की तरह बेखौफ थी। कुछ साल पहले एक बार यूं ही बातचीत में हकीमू भाई ने बताया कि यार मैं गेंदबाज मुझे ठीक वैसी ही गेंद फेंकते थे जैसी में चाहता था। ये गेंदबाजों पर हावी होने का आत्मविश्वास है।
दरअसल, अस्सी के दशक के दूसरे हिस्से में क्रिकेट भारत के गांव कस्बों तक पहुंच गया। 1983 में क्रिकेट विश्वकप और 85 में बेंसन एंड हैजेस जैसे बड़े टूर्नामेंट जीतने के कारण देश में क्रिकेट की लोप्रियता बढ़ रही थी। जबकि क्रिकेट के सिरमौर वैस्टइंडीज का खेल ढलान पर था। सर्वकालिक महान बल्लेबाज विव रिचर्ड्स अपना बल्ला खूंटी पर टांगने की तैयारी कर रहे थे। ठीक इसी दौर में उत्तरकाशी जैसे पहाड़ी कस्बे में हकीमुद्दीन खान के रूप में एक नैसर्गिक बल्लेबाज तैयार हो रहा था। जिसने क्रिकेट का ककहरा वहां के आजाद मैदान और पुरी खेत में सीखा था। बिना किसी कोचिंग के हकीमू भाई अपनी प्रतिभा के दम पर गढ़वाल युनिवर्सिटी की टीम में जगह बनाई। लखनऊ में उन्होंने युनिवर्सिटी की टीम का प्रतिनिधित्व किया और भारतीय टीम में खेल चुके तेज गेंदबाज अतुल वासन को एक छक्का भी लगाया। एक अंतर विश्वविद्यालयी टूर्नामेंट में श्रीनगर के खिलाफ 163 रन की पारी उनकी यादगार पारियों में शामिल है। जबकि मैच सिर्फ बीस ओवरों का था। इस टीम के एक गेंदबाज ने हताश होकर उन्हें अंडर आर्म गेंद यानी बिना गेंदबाजी ऐक्शन के नीचे से ही लुढ़काते हुए गेंद फेंक दी।
पेशे से व्यायाम शिक्षक और एक खिलाड़ी के तौर पर आज भी हकीमू भाई अनुशासित जीवन जीते हैं। पचास की उम्र में भी वे उत्तरकाशी में नियमित रूप से टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे हैं, और नए खिलाडि़यों के लिए उनकी फिटनेस मिसाल बनी हुई है।