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MEDIA LIVE : जुबानी जंग: नीट में फेल होने वाले विद्यार्थी जाते हैं विदेश: केंद्रीय मंत्री जोशी

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मीडिया लाइव : हमारे देश में नेताओं को कुछ अनाप सनाप बोलने कि आदत हो गयी है। बिना किसी स्पष्ट और तथ्यात्मक जानकारी के कुछ भी ऊलजलूल टिपण्णी करना जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगो को शोभा नहीं देता। अब यहीं देखिये केंद्र सरकार में बेहद महत्वपूर्ण पद पर बैठे इन मंत्री महोदय को ही देख लीजिये, क्या कह रहे हैं।

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गौरतलब है कि यूक्रेन और रूस के बीच जंग के बीच केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी के बयान से देश में जुबानी जंग छिड़ गई है। यूक्रेन में फंसे भारतीय विद्यार्थियों को लेकर जोशी ने कथित तौर पर कहा था कि विदेश में पढ़ने वाले 90 फीसदी मेडिकल स्टूडेंट नीट पास नहीं कर पाते हैं। उनके इस बयान पर विवाद छिड़ गया। कांग्रेस व राकांपा नेताओं ने केंद्रीय मंत्री जोशी पर निशाना साधा है।

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हालांकि केंद्रीय मंत्री ने अपने बयान को लेकर यह भी कहा था कि अभी इस मुद्दे पर बहस करने का सही वक्त नहीं है, लेकिन उससे पहले ही यह बयान चर्चाओं में आ चुका था।

भारतीय छात्रों का अपमान : सुरजेवाला :जोशी के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि केंद्रीय मंत्री ने यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों का अपमान किया है।

गैर जिम्मेदाराना बयान : सुले: राकांपा सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि कि यूक्रेन में फंसे छात्रों और उनके अभिभावकों दोनों के लिए हालात अच्छे नहीं हैं। हमारा ध्यान भारतीय यात्रियों को सुरक्षित निकालने पर होना चाहिए। यह सोचकर चिंता होती है कि ऐसे माहौल में भी हमारे कुछ मंत्री कठोर, असंवेदनशील और गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं।

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छात्र नवीन की मौत का मखौल : रागिनी नायक: कांग्रेस नेता रागिनी नायक ने भी केंद्रीय मंत्री जोशी पर निशाना साधा। उन्होंने जोशी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। नायक ने कहा कि फेल होने वाले 90 फीसदी विद्यार्थी विदेश में पढ़ने जाते हैं, यह कहने से उनका क्या मतलब है? रागिनी बोलीं, ‘अगर आप किसी का दुख साझा नहीं कर सकते तो इस तरह के बयान तो ना दें। आप छात्र नवीन की मौत का मखौल उड़ा रहे हैं। इस बयान के लिए पीएम मोदी और जोशी को माफी मांगनी चाहिए।

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विदेश में सस्ती मेडिकल पढ़ाई: इसलिए भारतीय छात्र जाते हैं वहां

यूक्रेन जैसे देशों में भारतीयों के लिए मेडिकल की पढ़ाई करना सस्ता है। यूक्रेन व रूस समेत कई देशों में पांच साल में करीब 30 लाख रुपये खर्च करके मेडिकल की पढ़ाई पूरी की जा सकती है। वहीं भारत में इसका खर्च 70 लाख से एक करोड़ तक पहुंच जाता है। यदि सीटें कम हों तो दिक्कतें और ज्यादा बढ़ जाती हैं।इन देशों के पाठ्यक्रमों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता दी है। इनकी भारत के साथ-साथ यूरोपियन काउंसिल और मेडिसिन, जनरल मेडिसिन काउंसिल ऑफ यूके की भी मान्यता है। इससे छात्रों के सामने अच्छे विकल्प खुल जाते हैं। विदेशों से एमबीबीएस कर के आने के बाद भारत में इन विद्यार्थियों को एक टेस्ट देना पड़ता है। हालांकि यह एक तरह से औपचारिक मात्र होता है।

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