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MEDIA LIVE : सियासी अपडेट : कांग्रेस प्रत्याशियों को इन राज्यों में भेजने के कयास

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मीडिया लाइव, देहरादून : राजनीति कब क्या हालात पैदा कर दे कहा नहीं जा सकता। देश के सियासी मिजाज में बीते कुछ सालों से जो गिरावट देखी जा रही है, वह स्वस्थ राजनीति और लोकतंत्र के लिए कतई ठीक नहीं समझी जा सकती है। उत्तराखंड में पंचकवी निर्वाचित विधानसभा के लिए बीती 14 फरवरी को मतदान हुआ था। 10 मार्च को मतगणना के बाद परिणाम आने हैं। बीजेपी कांग्रेस और कुछ सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों के जीतने की खूब चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन अब जैसे जैसे दिन नजदीक आने वाले हैं , पार्टियों के नेतृत्व के माथे पर बल पड़ने लगे हैं। चिंताएं होना लाजमी भी है। यहाँ पहले भी ऐसा कुछ हो चूका है कि दूध का जला छांछ भी फूंक कर पियेगा ही। हम यहाँ बात करने वाले हैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की। जिस पर यह अटकलें लगाई जा रही हैं।

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जब 2012 में कांग्रेस 32 और भाजपा 31 सीटों पर सिमट गई थी

10 मार्च को ईवीएम के पिटारे से नतीजों की कुछ ऐसी ही तस्वीर बनीं तो सरकार बनाने के लिए पार्टियां पूरा जोर लगाएंगी। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का नतीजा आने से पहले भाजपा और कांग्रेसी दिग्गज अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। लेकिन कांटे का मुकाबला होने की वजह से उनके दिल भी धक-धक कर रहे हैं। इस बीच सियासी हलकों में अटकलें तेज हैं कि कांग्रेस अपने जिताऊ माने जाने वाले प्रत्याशियों को राजस्थान या छत्तीसगढ़ भेज सकती है।

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हालांकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ऐसी किसी भी संभावना से साफ इनकार कर रहे हैं। गोदियाल कहते हैं कि उन्हें कोई डर नहीं है, लेकिन भाजपा येन केन प्रकरण सत्ता प्राप्त करना चाहती है। उत्तराखंड में कांग्रेस दूध की जली है, इसलिए छांछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती है। सियासी हलकों में यदि ये कयासबाजियां तेजी से हो रही हैं कि उसने अपने जिताऊ प्रत्याशियों को कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान व छत्तीसगढ़ भेजने की तैयारी कर ली है तो इसे कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी। स्वयं गोदियाल कह रहे हैं कि 2016 में भाजपा ने जो किया, वह बताता है कि वह हर हाल में सत्ता प्राप्त करना चाहती है। वह कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भाजपा के लिए सत्ता के आगे कोई नैतिकता नहीं है।

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ये दिग्गज भी जानते हैं कि मुकाबला कांटे का है

बाहर से कांग्रेसी दिग्गज चाहे 40 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रहे हों, लेकिन धरातल से जो फीडबैक प्राप्त हो रहा है, उसमें वह अधिकांश सीटों पर कांग्रेस बेहद कड़े मुकाबले में फंसी है। सियासी जानकारों का मानना है कि हालात 2012 वाले हो जाएं तो कोई अचरज वाली बात नहीं होगी। 2012 में कांग्रेस 32 और भाजपा 31 सीटों पर सिमट गई थी। 10 मार्च को ईवीएम के पिटारे से नतीजों की कुछ ऐसी ही तस्वीर बनी तो इस बार भाजपा सरकार बनाने का दांव चलने से बिल्कुल नहीं चूकेगी।

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तैयार हो रही है रणनीति

कांग्रेसी हलकों में चर्चा गर्म है कि पार्टी आलाकमान चुनाव परिणाम से पहले और उसके बाद की स्थितियों के आधार पर अपनी रणनीति बना रहा है। पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में कांग्रेस सत्ता हासिल करने को पूरी ताकत झोंक रही है। जोड़ तोड़ की सियासत से बचने को कांग्रेस ऐसा अभेद्य कवच तैयार करने में जुटी है जो बीजेपी के लिए दुष्कर हो जाए। इसमें प्रत्याशियों और जीत के बाद विधायकों को अज्ञात ठिकानों पर भेजने कि तयारी भी शामिल है।

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