आई एम बैक टू चौबट्टाखाल: कौन होगा सीएम का चेहरा

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मीडिया लाइव : आई एम बैक टू चौबट्टाखाल. दिमाग पर जोर मत डालिए ऐसा हमने नहीं बल्कि एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को दिए एक मोबाईल संदेश में कहा है. नेता जी का कहने को तो उत्तराखंड की सियासत में काफी बड़ा रुतबा रखते हैं. लेकिन इस कथन से लगता है वो इस बार खुद विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कहना चाह रहे थे. कार्यकर्ताओं और पार्टी के स्थानीय संगठन की समझ में साफ तौर पर नहीं आ पाया कि वो खुद चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं या अपने किसी पारिवारिक सदस्य की. लेकिन जो भी हो नेता जी ने साफ कह दिया है कि पार्टी कार्यकर्ता पूरी तैयारी में जुट जाएँ. उनके चौबट्टा विधान सभा के बीरोंखाल इलाके के कार्यकर्ताओं में इस सन्देश से ऊर्जा का संचार हो गया है. 

    गौरतलब यह है कि पौड़ी गढ़वाल की चौबट्टाखाल विधानसभा सीट राज्य के पहले विधानसभ चुनाव 2002 से ही हॉट और वीवीआईपी सीट रही है. इस सीट पर पूर्व कांग्रेसी दिग्गज नेता सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत दो बार विधायक रह चुकी हैं. पहली बार चुनाव जीतने पर उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया गया था. वहीँ 2007 के चुनाव में बीजेपी को राज्य में सरकार बनाने का मौका मिला. बावजूद विपक्ष में रहने पर भी अमृता रावत यहाँ पूरी तरह सक्रिय रही. लेकिन इसके बाद भी क्षेत्र में उनका ग्राफ गिरता रहा. नतीजतन उन्होंने 2012 के विधान सभा चुनाव में चौबट्टाखाल छोड़ रामनगर की रह पकड़ने को मजबूर होना पड़ा. कांग्रेस की सरकार आई और उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. लेकिन 2013 की आपदा के बाद प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव करते हुए हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. इस फेर बदल के बाद सतपाल महाराज और हरीश रावत के बीच लगातार मतभेद गहराते चले गये. ठीक ऐन 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले महाराज कोंग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. इसके कुछ दिन बाद ही महाराज की पत्नी अमृता रावत को सीएम हरीश रावत ने कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया. इसके बाद अमृता रावत कोंग्रेस में एक विधायक के तौर पर नाम मात्र के लिए ही बनी रही. 18 मार्च 2016 के बाद प्रदेश में बदले सियासी हालात के बाद जो कुछ हुआ उसमे अमृता रावत को भी अपनी विधायकी गंवानी पड़ी. 

   सूत्रों की माने तो बीजेपी ने इस बात का मन बना लिया है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के बाद विधायक दल का नेता यानी सीएम चुनाव जीत कर आये हुए विधायकों में से ही चुना जायेगा. पार्टी पिछले कड़े अनुभवों को देखते हुए पुरानी गल्ती नहीं दोहराना चाह रही है. वहीँ केन्द्रीय तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्री और उत्तराखंड चुनाव के सह-प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान ने साफ़ कर दिया है कि पार्टी सीएम के तौर पर नेता का चेहरा जल्द ही सार्वजानिक करेगी. उन्होंने यह भी साफ़ कर दिया है कि भुवन चन्द्र खंडूड़ी को सीएम उम्मीदवार नहीं बनाया जा रहा है.पार्टी एक नया और योग्य चेहरा राज्य में देगी. उन्होंने कहा पुछले चुनाव के हालात दूसरे थे और आज हालात दूसरे हैं, इसलिए समय के साथ स्क्रिप्ट बदल जाती है.अब यह समझाना मुश्किल हो रहा है कि आखिर पार्टी किस नेता को सीएम के चेहरे के रूप में सत्ता में काबिज कांग्रेस नेता हरीश रावत के सामने खडा करेगी.

   वहीँ राजनीतिक जानकारों के बीच यह चर्चा जोरो पर होने लगी है कि चौबट्टाखाल विधानसभा क्षेत्र से क्या सतपाल महाराज खुद चुनाव मैदान में उतरने वाले हैं.अगर ऐसा है तो यह कयास लगाना बेहद आसान है की बीजेपी महाराज को सीएम उम्मीदवार बना सकती है. महाराज ही हरीश रावत के सामने एक बड़े चहरे के तौर पर पेश किये जा सकते जो उन्हें टक्कर दे सके. यदि अमृता रावत चौबट्टा से चुनाव लडती हैं तो यह भी साफ़ हो जाएगा कि महाराज फिलहाल बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने से अभी दूर हैं. ऐसे में जो चर्चा नए चहरे के तौर पर सबसे ज्यादा हो रही है वह नाम है संगठन के खिलाड़ी और पार्टी के चुनाव रणनीतिकार माने जाते रहे डॉ. धन सिंह रावत का. इस वक्त धन सिंह रावत की केंद्र में सबसे मजबूत पकड़ बताई जा रही है. उनके नाम पर दो पूर्व मुख्यमंत्री भी एक राय हो सकते हैं.श्रीनगर विधान सभा क्षेत्र में रावत इस वक्त बहुत मजबूत स्थिति में बताये जा रहे हैं. बीते तीन चार महीनों में वहां बीजेपी के संभावित उम्मीदवार डॉ. रावत की जीत को लेकर बेहद चर्चा होने लगी है. हालांकि कांग्रेस के सीटिंग विधायक गणेश गोदियाल को हल्के में नहीं आँका जा सकता है. उनका भी यहाँ मजबूत जनाधार है. लेकिन बदलते राजनीतिक माहौल में ज्यादा फायदा बीजेपी प्रत्याशी को होने की उम्मीद जताई जा रही है. जिस तरह से भारत पाकिस्तान के बीच हालत बने हैं और यह क्षेत्र सैनिक परिवार बाहुल्य है और उत्तराखंड में सैनिक परिवारों का बीजेपी को सम्रथन मिलता रहा है. वह बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है. एक सवाल और अगर चौबट्टा विधानसभा सीट से महाराज या उनकी पत्नी अमृता रावत चुनाव मैदान में उतरती हैं तो पार्टी के मौजूदा विधायक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत कहां से चुनाव लड़ेंगे या पार्टी उनकी चुनावी राजनीति पर फुल स्टॉप लगा देगी. सवाल और भी कई हैं.