दास्तान ए दारू : मास्क खिंचे, देह टकराई, गालियां गूंजी
मीडियालाइव : जैसे ही शटर खुला, बाहर बने गोलों में खड़े लोगों की लंबी लाइन में लहर सी दौड़ गई। यानी सुबह सात बजे से पहले ही ये लोग अनुशासित सिपाहियों की तरह आकर गोलों पर खड़े हो गए। मास्क पहनकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए। आधे घंटे बाद ही भीड़ बढ़ने लगी और बेचैनी भी। लिहाजा धक्का मुक्की शुरू हो गई, मास्क खिंचने लगे, शरीर टकराए, हवा में गालियां तैरने लगी। आखिर पुलिस को व्यवस्था बनाने को मशक्कत करनी पड़ी। तीसरे चरण के लॉकडाउन की पहली सुबह की ये तस्वीर लगभग हर शराब की दुकान पर थी। इतनी भीड़, बेचैनी और आपाधापी पहले चरण की शुरुआत में किराना की दुकानों में भी नहीं दिखी। ना ही नोटबंदी के वक्त बैंकों के बाहर ऐसी लाइन नजर आई थी। लेकिन यहां मामला शराब का है। किसी को एक महीने से नसीब नहीं हुए, जिनको नसीब हुई उन्होंने बड़ी कीमत चुकाई और किसी ने सेहत का ख्याल करते हुए अपने जज्बात को जज्ब करके रखा हुआ था। इस बीच कोरोना संकट और शराब के अंतर्संबंधों पर पूरा रिसर्च पेपर लायक मटीरियल तैयार हो गया। सरकार की गिरती आर्थिक स्थिति को सहारा देने के लिए इसे जरूरी कदम बताया गया। वहीं कोरोना से लड़ने में शराब के कारगर होने का दावा भी पेश किया जा रहा था। एक महीने से सोशल मीडिया पर पूरी थ्योरी तैयार हो ही चुकी थी। अब इसका प्रैक्टिकल शुरू हुआ जा रहा था। दोपहर तक देहरादून के अधिकांश ठेकों पर लाइनें एक से डेढ़ किलोमीटर तक लंबी हुई। कुछ दूरदर्शी लोग जमाखोरी की फिराक में थे, मगर पुलिस की मुस्तैदी ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। इस बीच ठेकों के कर्मचारी भी कोरोना वारियर्स जैसे नजर आ रहे थे। हो भी क्यों ना सरकार की झोली भरने का जिम्मा उनके कंधों पर जो है। फिलहाल पीने वाले खुश हैं, लेकिन जिस तरह पहले दिन लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की गत हुई, उसे देखते हुए लगता है कि ये खुशी फिर छिन ना जाए।