मत्स्य को कृषि और टूरिज्म से जोड़ें
मीडिया लाइव, पौड़ी:गढ़वाल मण्डल के मत्स्य पालकों की आजीविका विकास को बढ़ावा देने हेतु आज विकास भवन सभागार, पौड़ी में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ किया गया। कार्यशाला में गढ़वाल के प्रत्येक जनपद के 2 -2 किसानों को मत्स्य पालन में अच्छा करने पर प्रमाण पत्र वितरित किये गये। इस अवसर पर गढ़वाल के मत्स्य पालको हेतु हिन्दी भाषा में लिखित पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल ने कहा कि शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय (डीसीएफआर), नैनीताल उत्तराखण्ड में है, इसका यहां के मत्स्य पालकों को लाभ उठाना चाहिए। कहा कि मत्स्य को कृषि और टूरिज्म से जोड़ते हुए फिशरिज को बढ़ावा दें, ऐसे सिस्टम विकसित करें, जिससे किसान आर्थिक रूप से लाभान्वित हो। किसानों को एकीकृत मत्स्य पालन जीविकोपार्जन हेतु मत्स्य-गाय समन्वित पालन, मत्स्य-मुर्गी समन्वित पालन, मछली सह-बत्तख पालन आदि कर आगे बढ़ना चाहिए। ऐसी सोच विकसित करें कि टूरिस्ट को वहां पर मनोरंजन के साथ-साथ रहने-खाने के लिए भी सभी सुविधाएं उपलब्ध हों, इसके लिए होमस्टे भी अच्छा विकल्प है। इससे टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और लोगों को अधिक से अधिक रोजगार प्राप्त होंगे। कहा कि सकारात्मक सोच के साथ बेरोजगार लोगों का ग्रुप बनाकर एक समूह के रूप में कार्य करें, इसके लिए सहयोग किया जायेगा। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं एवं सब्सिडी का लाभ उठाकर स्वरोजगार को बढ़ावा मिल सकता है।
इससे पूर्व निदेशक, शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय नैनीताल देवाजित शर्मा ने प्रजेंटेंशन के माध्यम से शीतजल मत्स्य पालन की जानकारी देते हुए किसानों को 5 साल के लिए ऐसे एक्शन प्लान बनाकर काम करने को कहा, जिससे किसानों की इनकम बढ़े। उन्होंने कहा कि शीत जल की मछलियां भारत की मीठे जल की मदलियों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और ऐ मछलियां ऐसे जल स्रोतों में पायी जाती है, जहां जल का तापमान 5 से 25 डिग्री तक होता है। कहा कि पर्वतीय क्षेत्र की मछलियों में देसी प्रजाजियां सुनहरी महाशीर, स्नो ट्राउट, बरिलियस, लैबियो, गारा आदि सम्मिलित है। कहा कि देश में पहली बार भा.कृ.अनु.परि.-डीसीएफआर भीमताल में सुनहरी महाशीर के तालाबों में प्रजनन एवं नर्सरी स्तर पर पालन-पोषण के लिए जल प्रवाही हैरी तकनीकी का विकास किया गया है।
निदेशक, मत्स्य विभाग, उत्तराखण्ड डॉ. बी.पी. मधववाल ने कहा कि जिन क्षेत्रों से पलायन हो रहा है, वहां पर ऐसी योजनाएं विकसित करें कि मत्स्य पालन के साथ ही मुर्गी-बकरी/बत्तख पालन भी हो सके। उन्होंने केन्द्र सरकार की नील क्रान्ति योजना के बारे में बताते हुए कहा कि इस योजना में 100 घन मीटर का पक्का तालाब बनाया जाता है, जिस हेतु एक वर्ष पूर्व प्रस्ताव स्वीकृत किये जाते है। कहा अभिनव पहल के तहत ट्राउट योजना हेतु 164 करोड़ में से 100 करोड़ उत्तराखण्ड को प्राप्त हो चुका है। कहा कि मत्स्य नियमावली 2013 के तहत एंग्लिंग मत्स्य आखेट मात्र एंग्लिंग रॉड से ही किया जायेगा। कहा कि स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए अब मत्स्य, डेरी एवं पशुपालन के अलग मंत्रालय बनाये गये। कहा कि मत्स्य पालन के प्रति जिलाधिकारी काफी संवेदनशील है, और सभी किसानों को इसका लाभ उठाना चाहिए। जनपद प्रभारी मत्स्य अभिषेक मिश्रा ने भी प्रजेंटेंशन के माध्यम से जनपद में किये गये कार्यों एवं योजनाओं की जानकारी दी।
कार्यशाला में मुख्य विकास अधिकारी दीप्ति सिंह, नोडल ऑफिसर अनु.जाति डॉ. डी बर्वा, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुरेश चन्द्रा, जिला विकास अधिकारी वेदप्रकाश, जिला अर्थ एवं संख्याधिकारी निर्मल शाह, जिला पंचायत राज अधिकारी एमएम खान, जिला पर्यटन अधिकारी अतुल भण्डारी सहित गढ़वाल मण्डल के सभी जनपदों से किसान मौजूद थे।